________________ सिरिसिरिषालकहा 31 कमला पुतं पाटोसिआण सम्म भकाविऊण सर्व विज्जस्स आणणत्यं, पत्ता कोसंविनयरीए // 312 / / तं विज्जं तित्थगयं, पडिकलमाणी चिरं ठिा तत्थ / मुणिवयणाओ मुणिऊण पुत्तमुदि इई पत्ता // 313 / / साऽहं कमला सो एस मज्झ पुत्तत्तमो (त्थि) सिरिपालो। जाओ तुज्झ मुयाए, नाहो सव्वत्थ विक्खाओ // 314 // सीहरहरायजायं, नाउं जामाउअं तो रुप्पा / साणंदं अभिणदइ, संसइ पुग्नं च धूयाए // 315 // गंतूण गिहं रुप्पा, कहेइ तं भायपुग्णपालस्स / सोऽवि सहरिसो कुमरं, सकुडुंबं नेइ नियगेहं // 16 // अप्पेइ वरावासं पूरइ धणधनकंचणाईयं / तत्थऽच्छइ सिरिवालो दोगुंदुगदेवलोलाए // 317 // अन्नदिणे तस्सावासपाससेरीइ निग्गओ राया। पिक्खई गवाखसठिअकुमरं मयणाइसंजुत्तं // 318 // तो सहसा नरनाहो मयणं दम चिंतए एवं / मयणाइ मयणवसगाइ मह कुलं मइलियं गं // 19 // इक्कं मए अजुत्तं कोबंधेणं. तया कयं बी। कामंधाइ इमीए विडियं ही ही अजुत्तयरं // 320 // एवं जायविसायास तस्स रमो मुमुण्यपालेण। विनत्तं तं समं पाचरि सबछरि।२१।।