________________ ...सिरिसिरिवालकहा साणंदा सा आसीसदाणपुव्वं मुयं च मुण्डं च। .. अभिनंदिऊण पभणइ तइयाऽहं वच्छ ! तं मुत्तुं // 252 / / कोसंबीए विज्जं सोऊणं जाव तत्थ वच्चामि / ता तत्थ जिणाययणे, दिहो एगो मुणिवरिंदो // 253 // खतो दंतो संतो, उवउत्तो गुनिमुत्तिसंजुत्तो। करुणारसप्पहाणो अवितहनाणो गुणनिहाणो // 254 // धम्मं वागरमाणो पत्थावे नमिय सो मए पुट्ठो। भयवं ! किं मह पुत्तो कयावि होही निरुयगत्तो // 255 // तेण मुर्णिदेणुत्तं, भहे ! सो तुज्झ नंदणो तत्थ / तेणं चिय कुठियपेडएण दळूण संगहिओ / / 256 // विहिओ उंबरराणुत्ति नियपहू लद्धलोयसम्माणो / संपइ मालवनरवधूयापाणप्पिओ जाओ // 257 // रायसुयावयणेणं गुरुवइ स सिद्धवरचक्कं / आराहिऊण सम्मं संजाओ कणयसमकाओ // 258 // सो य साहम्मिएहि, पूरियविहवो सुधम्मकम्मपरो / अच्छइ उज्जेणीए, घरणीइ समनिओ सुहिओ // 259 // तं सोऊणं हरिसिअचित्ताऽहं वच्छ ! इत्थ संपत्ता। दिट्ठोसिवहूसहिओ, जुण्हाइ ससिव्व कयहरिसों // 260 // ता वच्छ ! तुमं बहुयासहिओ जय जीव नंद चिरकालं / एसच्चिअ जिणधम्मो, जावज्जीवं च मह शरणं // 26 //