________________ सिरिरयणसेहरसूरिहि संकलिया जिणरायपायपराम,नमिजणं बंदिऊण मुगुरुं च। तिनिधि करत्ति धम्म, सम्म जिणधम्मबिहिनिउणा // 262 // ते अन्नदिणे जिणवरपूर्ण काऊण अंगअगमयं / भावञ्चयं करता, देवे वंदति उवउत्ता // 263 // इओ याध्यादुहेण सा रुप्पसुंदरी रूसिऊण सह रना। निअभायपुण्णपालस्स मंदिरे अच्छइ ससोया // 264 // वीसारिऊण सोअं, सणिों सणिअंजिणुत्तवयणेहिं / जग्गिअचित्तविवेआ समागया चेइयहरंमि // 265 // जा पिक्खइ सा पुरओ, तं कुमरं देववंदणापउणं / निउणं निरुवमख्वं पच्चक्खं सुरकुमारंव / / 266 // तप्पुटीइ ठिआयो जणणीजायाउ ताव तस्सेव। दण रुप्पसुंदरि राणी चिंतेइ चित्तंमि // 267 // ही एसा का लहुया बहुया दीसेइ मज्झ पुत्तिसमा। जाव निउणं निरिक्खइ उपलक्खइ ताप से मयणं / / 268 // नृणं मयणा एसा, लग्गा एयरस कस्सवि नरस्स। पुढीइ कुटिअं तं मुत्तूणं चत्तसइमग्गा // 269 // मयणा मिणमयनिउणा संभाविज्जइ न एरिसं तीए / भवनाडयंमि अहवा ही ही किंकिंन संभव // 270 // विहिकुले कलंक आणादसणं च जिणधम्मे। जीए तीइ सुयाए न मुयाए तारिसं दुक्खं // 271 //