________________ बाद सिरिसिरियालकहा अह अन्नदिणे आसोअसेअअवमितिहीइ साहुते। / मयणासहिओ कुमरो, आरंभइ सिद्धबक्कतवं // 239 // पढम तणुमणसुद्धिं काऊण जिणालए जिणच्चं च / सिरिसिद्धचक्कपूयं अट्ठपयारं कुणइ विहिणा // 233 // एवं कयविहिपूओ पञ्चक्खाणं करेइ आयाम / आणंदपुलइअंगो जाओ सो पढमदिवसे वि // 234 // बीअदिणे सविसे संजाओ तस्स रोगरवसायो। एवं दिवसे दिवसे रोगखए बड्ढए भावो // 235 // अह नवमे दिवसंमी पूअं काऊण वित्यरविहीए। पंचामएण ण्हवणं करेइ सिरिसिद्धचक्कस्स // 236 / / ण्हवणूसवंमि विहिए तेणं संतीजलेण सव्वंग। संसित्तो सो कुमरो जाओ सहसत्ति दिव्वतः // 237 // सव्वेसि संजायं अच्छरिअं तस्स दसणे जाव / ताव गुरू मणइ अहो एयस्स किमेयमच्छरि ? // 238 // इमिणा जलेण सव्वे दोसा गहभूअसाइणीपमुहा / नासंति तक्खणेणं, भविआणं सुद्धमावाणं // 239 // खयकुटुजरभगंदरभूया बाया विसूइआइआ। जे केवि दुट्ठरोगा ते सव्वे जति उवसामं // 24 // जलजलणसणसावयभयाई विसषेत्रणा उईलो। दुपयचउप्पयमारीउ नेव पहवंति लोमि // 241 // .