________________ 22 सिरिरयणसेहरसूरिहिं संकलिया एयंमि कए न हु दुकुटखयजरभगंदराईआ। पहवति महारोगा पुव्वुप्पन्नावि नासंति // 222 / / दासत्तं पेसत्तं विकलत्तं दोहगत्तमंधत्तं / देहकुलजुंगियत्तं न होइ एयस्स करणेणं // 223 / / नारीणवि दोहग्गं, विसकत्र कुरंडरंडसं। वंझत्तं मयवच्छत्तणं च न हवेइ कइयावि // 224 // किं बहुणा जीवाणं, एयस्स पसायो सयाकालं / मणवंछियत्यसिद्धी, हवेइ नत्थित्य संदेहो // 225 // एवं तेसि सिरिसिद्धचकमाहप्पमुत्तम कहिउँ / सावयसमुदायस्सवि गुरुणो एवं उवइसति // 226 // एएहिं उत्तमेहि, लक्खिज्जइ लक्खणेहिं एस नरो। जिणसासणस्स नूणं, अचिरेण पभावगो होही // 227 // तम्हा तुम्हं जुज्जइ, एसिं साहम्मिआण वच्छल्लं / का जेण जिणिदेहि वनिों उसमें एयं // 228 / / तो तुदहि तेहिं, मुसावएहि वरंमि ठाणंमि / ते ठविऊण दिन, धणकणवत्थाइयं सव्वं // 229 / / न यतं करेइ माया, नेव पिया नेव बंधुवम्गो अ। जं वच्छल्लं साहम्मिआण मुस्सावओ कुणइ // 230 // तत्य ठिओ सो कुमरो मयणावयणेण गुरुवरसेणं / सिक्खेइ सिद्धचक्कप्पसिद्धपूाविहिं सम्मं // 231 //