________________ लिरिसिरिवालकहा. 13 मलिअंगुलिया भगिक, अम्हेहिं सुपा निवरिखमा कित्ती / नं किल मालबसया, करेइ नो पत्थमाभंग / / 128 // नो सा निम्मलकिती, हारिजउ अज नस्वरिंदस्त। अहका दिज्जउ काविहु, धूया कुकुलेविसंमया // 129 // पभणेह नरवरिंदो, दाहिस्सइ तुम्ह कन्नमा एगा / को किर हारइ कित्ति, इत्तियमित्तेण कज्जेण ? // 130 // चिंतेइ मणे सया, कोचानलनलियनिम्मलविवेगो। नियधूयं अरिभु, तं दाहिस्सामि एक्स्स // 131 // सहसा पलिऊम तमो, नियमाकासंमि आगओ राया / बुल्लावइ तं मयणासुन्दरिनामं नियं धृयं // 132 / / हुँ अज्जवि जइ मनसि, मज्झ पसायरस संभवं मुखं / ता उत्तमं वरं ते, परिणाविय देमि भूरि धणं // 133 // जइ पुण नियकम्मं चिय, मन्नास ता तुज्झ कम्मणाणीओ। एसो कुटिअरामो, होउ वरो कि वियप्पेण ? // 134 // इसिऊण भणइ बाला, आणीओ मज्झ कम्मणा जो उ / सो चेव मह पमाणं, राओ वा रंकजाओ वा // 135 // कोवंधेणं रन्ना, सो उंबरराणओ समाहूओ। भणिओ य तुममिमीए, कम्मापीओसि होसु बरो॥१३६॥ तेणुत्तं नो जुत्तं, नरवर ! वुपि तुज्झ इय वयणं / को कणवरयणमालं, बंधइ कागस्स कंठमि // 137 // एममहं पुंचकयं, कम्मं भुजेमि एरिसमणज्ज। अवरं च कहमिमीए, जम्मं बोलेमि जाणतो? // 138 //