________________ 29 सिरिरक्षणसेहतमूरिहि-संकलिया केवि पयवाया, कच्छादग्मेहि केवि विकराम। केवि विविभपामासमबिया सेवगा तस्स / / 117 // एवं सो कुडिअपेडएण परिवेढिलो महीपीढे / रायकुलेसु भमंसी, पंजिअदाणं पगिम्हेइ // 118 // सो एसो आगइ, मरवर ! आडंबरेण संनुत्ती। ला मम्ममिषं मुगु, गच्छह अन्नं दिस तुम्मे // 119 // तो बलिओ मरनाही, अन्नाइ दिसाइ जाव ताप पुरो। तो पेडयपि तीए, दीसाइ बलियं तुरिज तुरित // 120 // राया भणेइ मेति, पुरषो गंसूणिमे निवारेनु / मुहमग्गियपि दाउं, जेणेसि दसणं न मुह // 121 // मात करेइ मैती, गलिअमुलिनायो दुयं साव / नरवर पुरओ ठाउं, एवं भणिउं समाडको / 122 // सामिय! अम्हाण पहू, उंबरनामेण राणश्रो एसो। सम्वत्थ वि मलिना, गलहि क्षणमाहि // 12 // तेणऽम्हा मणकपणवीसमुहेहिं कीरहम किषि। एतस्स पसायेणं, अम्हे सब्वेवि अइसुहिनो / 124 // किंच-गो माइसिमस्थि, अम्ह मममितिओ विधप्पुति। जइ लहइ राणमो राणियति ता सुंदरं होइ॥ 125 // ता नरनाह ! पलायं, काळयं देहि समय एन / अवरेण कणमकपडदाणे तुबह पज्जतं 126 / / तो भगइ रावती, अहो अजुर विमग्निभं तुमर। . को देइ नियं यं कुहकिरिस्त जागती / / 197