________________ सिरिंसिरिवालकहा. तम्हा जो तुम्हाणं, रुचइ सो ताय ! मज्झ होउ वरो। - जइ अस्थि मज्झ पुन्नं, ता होही निग्गुणोवि गुणी।।१०६ जई पुण पुन्नविहीणा, ताय ! अहं ताव सुंदरोवि वरो। होही असुंदरुचिय, नूणं मह कम्मदोसेणं // 107 // तो गाढयरं राया, रुटो चिंतेइ दुन्वियढाए / एयाइ को लहुओ, अहं तो वेरिणी एसा // 108 // रोसेण वियडभिउडीभीसणवयणं पलोइऊण निवं। दक्खो भणेइ मंती, सामिय ! रइवाडियासमओ // 109 रोसेण धमधमंतो, नरनाहो तुरयरयणमारूढो। सामंतमंतिसहिओ, विणिग्गओ रायवाडीए // 110 // जाव पुराओ बाहिं, निग्गच्छइ नरवरो सपरिवारो। ता पुरओ जणवंदं, पिच्छइ साडंबरमियंतं // 111 // तो विम्हिएण रन्ना, पुट्ठो मती स नायवुत्तंतो। विन्नवइ देव निमुणह, कहेमि जणवंदपरमत्थं // 112 / / सामिय ! सरूवारिसा, सत्तसया नववया ससोंडीरा / दुट्ठक्कुट्ठभिभूया, सव्वे एगत्थ संमिलिया // 113 // एगो य ताण बालो, मिलिओ उंबरयवाहिगहियंगो। सो तेहिं परिगहिओ, उंबरराणुत्ति कयनामो // 114 // वरवेसरिमारूढो, तयदोसी छत्तधारओ तस्स / गयनासा चमरधरा, घिणिधिणिसदा य अग्गपहा // 115. गयकन्ना घंटकरा, मंडलवइ अंगरक्खगा तस्स। . दद्दल थइआइत्तो, गलीअंगुलि नामओ मंती // 116 //