________________ 20 सिरिरयणसेहरसूरिहि-संकलिया . ता ताय ! नायतत्तस्स, तुज्झ नो जुज्जए इमो गयो !! जं मज्झ कयपसयापसायओ सुहदुहे लोए // 95 // जो होइ पुनबलिओ, तस्स तुम ताय ! लहु पसीएसि / जो पुण पुण्णविहूणो, तस्स तुमं नो पसीएसि // 96 // भवियव्वया सहावो, दवाइया सहाइणो वावि / पायं पुब्बोवज्जियकम्माणुगया फलं दिति // 97 // तो दुम्मिओय राया, भणेइ रे तसि मह पसाएण। वत्थालंकाराइ, पहिरंती कोसिम भणसि ? // 98 // हसिऊण भणइ मयणा, कयसुकयवसेण तुज्झ गेहमि / उप्पन्ना ताय ! अहं, तेणं माणेमि सुक्खाइं // 99 // पुवकयं मुकयं चित्र, जीवाणं सुक्खकारणं होइ। दुकयं च कयं दुक्खाण, कारणं होइ निब्भतं // 100 / / न सुरासुरेहि, नो नरवरेहि, नो बुद्धिवलसमिद्धेहिं / : कहवि खलिज्जइ इंतो, सुहासुहो कम्मपरिणामो // 101 // वो ल्हो नरनाहो, अहो अहो अप्पपुन्निा एसा। मझ कयं किंपि गुण, नो मन्नइ दुन्धियडा य // 102 // पभणेइ सहालोओ, सामिय ? किमियं मुणेइ मुदमई ? / तं चेव कप्परुक्खो, तुट्ठो रुटो कयंतो य // 103 // मयणा भणेइ घिद्धी, धणलवमित्तथिणो इमे सव्वे / जाणंतावि हु अलिअं, मुहप्पियं चेव जपंति // 104 // जह ताय ! तुह पसाया, सेवयलोआ हवंति सम्वेवि / - मुहिया ता समसेवानिरया किं दुक्खिया एगे ? // 105