________________ 14 सिरिरयणसेहरसूरिहि-संकलिया . ता भो नरवर ! जइ देसि कावि ता देस मज्झ अणुरुवं / दासिविलासिणिध्यं, नो वा ते होउ कल्लाण. // 139 // तो भणइ नरवरिंदो, भो भो महनंदणी इमा किंपि। नो मज्झकयं मन्नइ, नियकम्मं चेव मन्नेह // 140 // तेणं चित्र कम्मेणं, आणीओ तंसि चेव जोइ वरो। जइ सा निकम्मफलं, पावइ ता अम्ह को दोसो ? 141 तं सोउणं बाला, उठित्ता झत्ति उंबरस्त करें। गिण्हइ निययकरेणं, विवाहलग्गंव साहति // 142 // सामंतमंतिअंतेउरिउ वारंति तहवि सा बाला। सरयससिसरिसवयणा, भणइ सई सुच्चिअपमाणं // 143 // एगत्तो माउलओ, एगत्तो रुप्पसुंदरी माया। एगत्तो परिवारो, रुयइ अहो केरिसमजुत्तं ? // 144 // तहवि न नियकोवाओ, वलेइ राया अईव कडिणमणो। मयणावि मुणियतत्ता, निअसत्ताओ न पचलेइ // 14 // तं वेसरिमारोविअ, जा चलिओ उंबरो नियठाणं / / ता भणइ नयरलोओ, अहो अजुत्तं अजुत्तति // 146 // एगे भणंति घिद्धी, रायाणं जेणिमं कयमजुत्तं / अन्ने भणंति घिद्धी, एयं अइदुन्विषीयंति // 147 // केवि निदंति नणणिं, तीए निदंति केवि उवझायं / केवि निंदति दिव्वं, जिणधम्मं केवि निंदति // 148 // तहवि हु वियसियवयणा, मयणा तेणुंबरेण सह जंति / न कुणइ मणे विसायं, सम्मं धम्म वियाणंती / / 149 //