________________ सिरिरयणसेहरसूरिहि-संकलिया समयंमि पस्याओ, जायाओ कन्नगाउ दोहिपि / नरनाहोवि सहरिसो, वद्धावणयं करावेई / / 52 // सोहग्गसुंदरी नंदणाइ सुरसुंदरित्ति वरनामं / बीयाइ मयणसुंदरि, नामं च ठवेइ नरनाहो // 53 // समये समप्पियाओ, तओ सिवधम्मजिणमयविऊणं / अज्झावयाण रत्ना, सिवभूतिसुबुद्धिनामाणं // 54 // मुरसुंदरी अ सिक्खइ, लिहियं गणियं च लक्खणं छंद। कव्वमलंकारजुयं, तकं च पुराणसमिईओ // 55 // सिक्खेइ भरहसत्थं, गीयं नटुं च जोइसतिगिच्छं / विज्ज मंतं तंतं, हरमेहलचित्तकम्माई / / 56 // अन्नाइपि कुंडलक्टिलाई करलाघवाइकम्माइं। सत्थाई सिक्खियाई, तीइ चमुक्कारजणयाइं // 57 // सा कावि कला तं किंपि, कोसलं तं च नत्थि विन्नाणं / जं सिक्खियं न तोए, पन्नाअभिओगजोगेणं // 58 // सविसेस गीयाइसु, निउणा वीणाविणोयलीणा सा / मुरसुंदरी वियढा,-जाया पत्ता य तारुनं / 59 // जारिसओ होइ गुरू, तारिसओ होइ सोसगुणजोगी। इत्तच्चिय सा मिच्छ-दिहि उकिठदप्पा अ॥६॥ तइ मयणसुंदरीवि हु, एया उ कलाओ लोलमित्तेण। सिक्खेइ विमलपन्ना, धन्ना विणएण संपन्ना // 61 // जिणमयनिउणेणज्झावएण सा मयणसुंदरीबाला। वह सिक्खविया जह जिणमयंमि कुसलतणं पत्ता // 2 //