________________ सिरिस्यणसेहरसूरिहि-संकलिया / घणकम्मतमोभरहरणभाणुभूयं दुकालसंगधरं। नवरमकसायतावं, चरेह सम्मं तवोकम्मं // 32 // एयाई नवपयाई, जिणवरधम्ममि सारभूयाई / कल्लाणकारणाई, विहिणा आराहियन्वाइं // 33 // अन्नं च-एएहिं नवपएहि, सिद्ध सिरिसिद्धचकमाउत्तो। बाराहंतो संतो, सिरिसिरिपालुव्व लहइ मुहं // 34 // तो पुच्छइ मगहेसो, को एसो मुणिवरिंद ! सिरिपालो ? कह तेण सिद्धचकं, आराहिय पावियं मुक्खं ? // 35 // तो भणइ मुणी निमुपसु, नरवर ! अक्खाणयं इमं रम्मं / सिरिसिद्धचकमाहप्पसुंदरं परमचुजकरं // 36 // तथाहि-इत्थेव भरहखित्ते, दाहिणखंडंमि अत्थि सुपसिद्धो सवडिकयपवेसो, मालवनामेण वरदेसो // 37 // सो य केरिसो?:पए पए जत्थ मुगुत्तिगुत्ता, जोगप्पवेसा इव संनिवेसा। पए पए जत्य अगंजणीया, कुडुंबमेला इव तुंगसेला // 38 पए पए जत्थ रसाउलाओ, पणंगणाओव्व तरंगिणीओ। पए पए जत्थ मुहंकराओ, गुणावलीओव्व वणावलीओ॥३९ पए पए जत्थ सवाणियाणि, महापुराणीव महासराणी। पए पए जत्थ सगोरसाणि, मुहीमुहाणीव सुगोउलाणि // 40 तत्यय मालवदेसे, अश्यपवेसे दुकालडमरेहि / अत्थि पुरो पोराणा, उज्जेणी नाम सुपहाणा // 41 //