________________ सिरिसिरिवालकहा भावोवि मणोविसओ, मणं च अइदुज्जयं निरालंब / तो तस्स नियमणत्थं, कहियं सालंबणं झाणं // 21 // आलंबणाणि जइविहु, बहुप्पयाराणि संति सत्येसु / तहविहु नवपवझाणं, सुपहाणं बिति जगगुरुणो // 22 // अरिहंसिद्धायरिया, उज्झाया साहुणो असम्मत्तं / नाणं चरणं च तवो, इय पयनवगं मुणेयव्यं // 23 // तत्थरिहतेऽद्वारसदोषविमुक्के विसुद्धनाणमए / पयडियतत्ते नयसुरराए शाएह निच्चंपि // 24 // पनरसभेयपसिद्धे, सिद्धे घणकम्मबंधणविमुक्के / सिद्धाणंतचउक्के, झायह तम्मयमणा सययं // 25 // पंचायारपक्तेि, बिसुद्धसिद्धंतदेसणुज्जुत्ते / परउवयारिकपरे, निच्चं झाएह मूरिवरे // 26 // गणतिसीसु निउत्ते, मुत्तत्थज्झावणंमि उजुत्ते / सज्झाए लीणमणे, सम्मं झाएह उज्ज्ञाए // 27 // सव्वासु कम्मभूमिसु, विहरते गुणगणेहि संजुत्ते / गुत्ते मुत्ते झायह, मुणिराए निट्ठियकसाए // 28 // सम्बन्नुपणीयागमपयडियतत्तत्थसदहणरुवं / दंसणरयणपईवं, निच्च धारेह मणभवणे // 29 // जीवाजीवाइपयत्थसत्यतत्तावबोहरूषं च / नाणं सन्वगुणाणं, मूलं सिक्खेह विणएणं // 30 // असुहकिरियाण चाओ, सुहासु किरियासु जो य अपमाओ नं चारित्तं उत्तमगुणजुत्तं पालह निरुत्वं // 31 //