________________ 2 सिरिरयणसेहरसूरिहि-संकलिया एयंमि पुणो समए, सुरमहिओ बद्धमाणतित्थयरो। 'विहरंतो संपत्तो, रायगिहासन्ननयरंमि // 10 // पेसेइ पढमसीसं. जि8 गणहारिणं गुणगरिष्टुं / सिरिगोयमं मुणिदं, रायगिहलोयलाभत्थं // 11 // सो लद्धजिणाएसो, संपत्तो रायगिहपुरोज्जाणे। कइवयमुणिपरियरिओ, गोयमसामी समोसरिओ // 12 // तस्सागमणं सोउं, सयलो नरनाहपमुहपुरलोओ। नियनियरिद्धिसमेओ, समागओ झत्ति उजाणे // 13 // पंचविहं अभिगमणं, काउंतिपयाहिणाउ दाऊगं / पणमिय गोयमचलणे, उवविट्ठो उचियभूमीए // 14 // भयपि सजलजलहर-गंभीरसरेण कहिउमाढत्तो। धम्मसरूवं सम्मं, परोवयारिकतल्लिच्छो // 15 // भो भो महाणुभागा ! दुलहं लहिऊण माणुसं जमं / खित्तकुलाइपहाणं, गुरुसामग्गिं च पुण्णवसा // 16 // पंचविइंपि पमायं, गुरुयावायं विवजिउ झत्ति। . सद्धम्मकम्मविसए, समुज्जमो होइ कायव्यो ॥१७ायुग्मम्।। सो धम्मो चउमेओ, उवइटो सयलजिणवरिंदेहिं / / दाणं सीलं च तवो, भावोऽवि अ तस्सिमे भेया // 18 // तत्थवि भावेण विणा, दाणं नहु सिद्धिसाहणं होई / सीलंपि भाववियलं, विहलं चिय होइ लोगंमि // 19 // भावं विणा तवोविह, भवोहवित्थारकारणं चेव / * तम्हा निषभावुचिय, सुविसुद्धो होइ कायव्वो // 20 //