________________ 90 संत तारण तरण के ग्रन्थों की टीका कर, दई निसानी / तीन बत्तीसी, श्रावकाचार, उपदेश शुद्धसार सदग्रंथ बखानी // ममल पाहुड़, न्यान समुच्चयसार, त्रिभंगीसार, चौबीस ठाणा जानी / / 6 / / ब्रह्मचारी जी जब ही ग्रन्थ लिखते होते थे गद्गद् प्रानी / सोते-जागते सदा चिंतन में रहते बोलते थे अचक बानी // ग्रन्थ क्या हैं भगवन कुंद-कुंद के समन्वय की भरी है अध्यात्मवाणी / श्रद्धय गुरुवर्य तारण के ग्रंथों में पा रहे हैं हम जिनवानी // परोक्ष वंदना करके गुरू की मैं उनके गुणों के प्रति हो रहा श्रद्धानी / / 7 / / सत्यवक्ता, सदाचारी, सद्व्यवहारी, साधना, संयम के धारी थे / समाज-सुधारक संत, समता के धारी, योगाभ्यासी थे / सरल-सौम्य-मरत, देशव्रत पालक श्री ब्रह्मचारी जी थे / दयाल-दाता, सेवाभावी. सद्विचारी, शिरोमणि साधु थे / सुख-सागर भजनावली के कई भागों में लिखी अध्यात्मवानी // 8 // जैन जाति के एकीकरण के लिये उन्होंने प्रयत्न किया था / बाल विवाह, बृद्ध विवाह, अनमेल विवाह का विरोध किया था / मरण भोज, दहेज प्रथा को मिटाने का दृढ़ संकल्प लिया था / गर्भपात, भ्र णहत्या को रोकने हेतु विधवा विवाह का समर्थन किया था / पाखण्डता, मिथ्यात्व छोड़ने को लोगों को सीख सिखानी // 6 / / विशाल-विद्वता, गंभीरता, धार्मिकता से ओतप्रोत थे / अध्ययन-मनन-चिंतन में सदा लवलीन व्यस्त थे / सब मिलाकर 'सतत्तर ग्रंथों के लेखक बने थे / हर ग्राम, नगर-नगर में भ्रमण कर मार्ग-दर्शक बने थे। जैन-साहित्य का आपने अंग्रेजी भाषा में भी अनुवाद करानी // 10 // तारण स्वामी के ग्रन्थों की है भाषा अटपटी कही ब्रह्मज्ञानी / जल में समाधि देने की लोगों को सीख है सिखानी / / ब्रह्मचारी जी के रहस्योद्घाटन से उन्होंने पढ़ने की ठानी / पंडित फलचंद्र शास्त्री कानजी स्वामी कह रहे हैं निरगुणी है वानी // अनेक प्रवचनों में काम आ रही है समाज में छदमस्तवाणी // 11 // अपमान, तिरस्कार से नहीं कभी भयभीत हुए थे // कर्तव्य मार्ग पर चलने में नहीं कभी संकुचित हुए थे / साधर्मियों की सेवा, सहानुभूति में सदा दत्तचित्त हुए थे / ऐसे थे महान् व्यक्ति, लेखक, साहित्यिक, कवि हुये थे / समाज सेवकों को सदा मानापमान की वेदना पड़ती है उठानी // 12 //