________________ xx ब्रह्मचारी शीतलप्रसाद जी वो थे महान कल्याणी ज्ञानी, जिनकी अब तक अमर कहानी / है बिछुड़ने का शोक सभी को, संसार चक्र है मानो ज्ञानी // कोई न भूल सकता है उपकार तेरे, अगणित कार्य समाज हित में किए। अज्ञान अंध मानवों को सुखद मार्ग सदा को दिखा दिए / वांत जैन जनता हित में छपाके. त्यागी अनेक तुमने शिव मार्म में लगा दिए, जो भूले तथा भटकते निज मार्म पाये, उनको अपने लेखों द्वारा ज्ञानी बनाये। लेते न भेंट कुछ भी परमार्थ के थे सेवी, जो डूबते थे उन्हें पार लगाए / श्रद्धा है मन में मेरी, सन्मार्ग दर्शन सबको कराए / सामाजिक कुरीतियों को, तुमने ही दूर भगाया // नवयुवकों को हंस-हंस कर तुमने निज गले लगाया। शिक्षा प्रचार करके अज्ञानता को नशाया / जाने कितने सोनेवालों को धर्म ध्वनि सुना के जगाया। दस्साओं को पूजन अधिकार तमने दिलाया / क र रूढ़ियों को तुमने, जड़ से मुकाबला कर मिटाया। पथ दर्शक बन सदा सत्य का, मार्ग हमको सत्य का दर्शाया। ऊंच-नीच का भेदभाव, अंतर से दूर हटाया / जब तक नभ में रवि शशि तारे, वसुधा पर जिनवाणी / जन जन में गूजे तेरी सुमधुर सुधारक अमृत वाणी // ब्रह्मचारी जी थे महान ज्ञानी कल्याणी // -श्री मिश्रीलाल पाटनी