________________ जीवन-परिचय वि० सं० 1935 की कार्तिक कृष्ण अष्टमी (नवम्बर 1878 ई०) के दिन लखनऊ नगर के मोहल्ला सराय-मआली-खां की कालामहल नामक पुरानी हबेली में श्रीमती नारायणी देवी की कुक्षि से उनका जन्म हुआ था / पिता का नाम मक्खनलाल था और पितामह का मंगलसेन था, जो संस्कृत फारसी एवं महाजनी हिसाव में निपुण थे तथा गोम्मटसार, समयसार आदि ग्रन्थों के स्वाध्याय के प्रेमी थे। वह लखनऊ के शाहजी की फर्म की कलकत्ता शाखा के खजांची नियुक्त होकर वहीं रहने लगे थे और बांसतल्ला के दिगम्बर जैन मंदिर की धर्मगोष्ठी के शीघ्र ही प्राण बन गये थे। पौत्र शीतलप्रसाद आठ वर्ष के ही थे, जब मंगलसेन जी इन्हें अपने साथ कलकत्ता लिवा ले गऐ। पितामह से उन्हें धार्मिक संस्कार तथा प्रारंभिक ज्ञान प्राप्त हुआ। कलकत्ता में ही 15 वर्ष की आयु में इनका विवाह छेदीलाल गुप्त की कन्या के साथ कर दिया गया। नववधु वैष्णव संस्कारों में पलीं थी, किंतु इनके संसर्ग में वह शीघ्र ही श्रद्धालु जैन श्राविका बन गईं और विद्या अभ्यास भी किया। सन 1896 में शीतलप्रसाद ने कलकत्ता में ही मैट्रीकुलेशन परीक्षा प्रथम श्रेणी में उर्तीण की और वह सपत्नीक लखनऊ वापस आ गये उसी वर्ष 24 मई 1896 के जैन गजट में उनका एक जोशीला समाजउद्बोधक लेख प्रकाशित हुआ / आजीवका के साधन के रूप में उन्होंने लखनऊ की घोष कम्पनी में एकाउन्टेन्ट की नौकरी कर ली और 1901 में रूड़की इंजीनिरिंग कालेज से एकाउन्टेन्ट का प्रमाण पत्र प्राप्त करके अवधरूहेलखन्ड रेलवे के लेखा विभाग में नियुक्त हो गए। नौकरी के कार्य से जितना समय शेष बचता था वह धर्मशास्त्रों के अध्ययन तथा समाज सेवा के कार्य में लगाते थे। दशलक्षण पर्व में चौक, लखनऊ के बड़े मंदिर में नित्य मध्यान्ह तीन-तीन घन्टे तक शास्त्र प्रवचन करते थे। वह बच्चोंऔर स्त्रियों की शिक्षा पर बल देते थे। स्थानीय जैन धर्म प्रवर्धनी सभा के वह प्राण थे, और अवध प्रान्तीय दि० जैन सभा की स्थापना करके उसके उपमन्त्री हुए। सन् 1600 में भा०दि. जैन महा सभा के मथुरा अधिवेशन में तथा 1901 में नजीबाबाद में आयोजित (15)