________________ 93 'जैनमित्र', 'वीर' गजटों में उनकी शोक संवेदना का अंश था / सराफ साहब चौक वालों का ब्रह्मचारीजी को दूध फल पहुँचाना माने उनका वश था / मन्नालाल कागजी, बरातीलाल जी का है कर्तव्य निभानी // 26 // तारण तरण समाज उनके शास्त्र उद्धार के प्रति कृतज्ञ रहेगी / वर्तमान में सेठ भगवानदास अरु डालचंद्र से उनकी कीर्ति बढ़ेगी / शत् शत् प्रणाम करू स्मति उनकी सदा हृदय में रहेगी / वे 'जहां' भी हों, जिस पर्याय में हों, धर्म प्रचार करें, कामना रहेगी। राधेलाल को जन-जन का आशीर्वाद मिले यह भावना है मानी / / 27 / / समस्त तारण समाज को उनके प्रति अपार श्रद्धा का भाव था / उनके रचे ग्रंथों को छपाने का बड़ा ही चाव था / सेठ मन्नूलाल, मथुराप्रसाद का उन्हें छपाने में नाम था / बहुतक ग्रंथों में सागर तारण समाज का नाम था // चौदह ग्रंथों में रचे श्री ने नौ ग्रंथ ही सुखदानी // 28 // रेल यातायात में समय से सामायिक वे करते थे / ऐसे थे कत्तव्यशील नहिं विघ्न बाधाओं से डरते थे / जैन धर्म के अनन्य भक्त, भक्ति-योग के पथ प्रदर्शक थे / स्यादवाद विद्यालय बनारस के श्री संचालक थे / मानवों के हितैषी, देव-शास्त्र-गुरू के थे बद्धानी // 26 // परिवार के बंधु संतूलाल धर्म प्रतिपालक दिखाते थे / श्री जी अस्वस्थ्यता में मुझसे कई जगहों को पत्र लिखाते थे / पत्रों में श्री सब को धर्म के प्रति जागरूक रहें प्रेरणा देते थे / ऐसे थे विवेकी, धर्म जागरूक समाजहित की चिंता में रहते थे / मोह तो हमें लेशमात्र भी उनमें नहिं दिखानी // 30 // खशालचन्द्र कंडया कई बार मेडीकल कालेज पधारे / सहृदयता, सहानुभति भरे शब्द उन्होंने मेरे प्रति उचारे // लखनऊ निवासियों का आग्रह था हम अभिनंदन करेंगे तुम्हारे / पं. महेन्द्रकुमार ने 'जैन मित्र' में लिखे कर्तव्य हमारे // कई बार सागर आने पर मुझे सेवा का अवसर मिला सुखदानी // 31 // अंतिम भद्धांजलि परोक्ष में उन्हें मैं करता भाई / देश, धर्म, जाति के लिये उन्होंने जो प्रीत दिखाई // स्मारिका अटल रहेगी उनकी चिरकाल तक भाई / गायेंगे गुणगान उनके सदैव सब मिल करके भाई //