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________________ - अरहा नायपुत्ते भगवं वेसालिए वियाहिए।। सूत्र 1, श्रु. 2, 2 अ. 230. इसी तरह भगवान् महावीर को 'नाए नायपुत्ते नायकुलनिव्वत्ते विदेहे विदेहजच्चे विदेह सूमो तीसं वासाइ विदेहं सित्तिं कट्ट आगारमझे विसित्त' (आचा.सू. 2-3-402 सू.) इत्यादि लिखा है जिसका आशय है कि भगवान् महावीर नाथ या ज्ञातृकुल के और विदेह देश के थे। ___ बौद्ध-ग्रन्थों में भगवान् महावीर अपनी जाति तथा वंश के आधार पर णाटपुत्त कहे जाते थे। संस्कृत में यह ज्ञातिपुत्र है जिसका अर्थ ज्ञाति का पुत्र। ___श्री बेवर ने अपनी पुस्तक 'इण्डियन सेक्ट ऑफ जैनाज' में माना है कि बुद्ध के लिए शाक्यपुत्रीय श्रमण शब्द का प्रयोग है। अत: निगण्ठों या निर्ग्रन्थों के प्रमुख नाटपुत्त या ज्ञातिपुत्र हैं। ज्ञातवंश के उत्तराधिकारी तथा निर्ग्रन्थ अथवा जैन समुदाय के अन्तिम तीर्थङ्कर वर्धमान एक ही व्यक्ति है। बौद्ध ग्रन्थों में निगण्ट नाटपुत्त के सन्दर्भ में कहा गया है कि वे अपने को अर्हत् और सर्वज्ञ कहते हैं ...... अपने शरीर को ढाकने से घृणा करते थे। इनको प्रभावशाली भी बतलाया गया है। नाटपुत्त (महावीर) पर टिप्पणी में राहुलजी ने लिखा है - 'नाटपुत्त' ज्ञातृपुत्र। ज्ञातृ लिच्छवियों की एक शाखा थी, जो वैशाली के आसपास रहती थी। ज्ञातृ से ही वर्तमान जथरिया शब्द बना है। महावीर और जथरिया दोनों का गोत्र काश्यप है। आज भी जथरिया भूमिहार ब्राह्मण इस प्रदेश में बहुत संख्या में है। उनका निवास रत्ती परगना भी ज्ञातृ=नत्ती लत्ती रत्ती से बना है। (बु.च., पृ. 110 का टि. 3) / वैदिक-परम्परा में भी निर्ग्रन्थ शब्द का प्रयोग हुआ है। इस प्रकार निर्ग्रन्थ भगवान् महावीर एवं जिन या अर्हत् की तरह जैन तीर्थङ्करों की यह संज्ञा हैं। निर्ग्रन्थ एवं उसके विभिन्न सन्दर्भो के प्रस्तुतीकरण के साथ मूल निबन्ध में विस्तृत विवेचना की गयी है। -83
SR No.032866
Book TitleJain Vidya Ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain
PublisherGommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
Publication Year2006
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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