________________ जैन एवं बौद्ध-परम्परा में निर्ग्रन्थ विवेचन - डॉ. विजयकुमार जैन, लखनऊ जैन-परम्परा अनादिकालीन है, पर 'जैन' शब्द बहुत प्राचीन नहीं है। हमारे तीर्थङ्करों को पहले अर्हत्, जिन, निर्ग्रन्थ श्रमण आदि नामों से पुकारा जाता था। यही कारण है कि जैन-परम्परा की प्राचीनता को लेकर लोगों में भ्रम पैदा होते रहते हैं। बौद्ध-साहित्य में भगवान् महावीर एवं उनके अनुयायियों को क्रमश: निगण्ठनाठपुत्त एवं निगण्ठ कहा गया है। विद्वान् इस बात को स्वीकार कर चुके हैं कि ये सन्दर्भ भगवान् महावीर के ही हैं। ' जैन ग्रन्थों में भी निर्ग्रन्थ शब्द प्रयुक्त है। तत्त्वार्थसूत्र में निर्ग्रन्थों के पाँच भेद बतलाएं हैं - पुलाक-बकुश-कुशील-निम्रन्थ-स्नातका निम्रन्थाः। (त.सू., 9/46) ये निम्रन्थ सभी तीर्थङ्करों के शासन में होते हैं। तत्त्वत: 'निर्ग्रन्थ' वह है जिसमें राग-द्वेष की ग्रन्थि का अभाव हो; किन्तु व्यवहार में अपूर्ण होने पर भी जो तात्त्विक निर्ग्रन्थता का अभिलाषी है, भविष्य में वह स्थिति प्राप्त करना चाहता है उसे भी निर्ग्रन्थ कहा जाता है। अत: चारित्र परिणाम की हानि वृद्धि एवं साधनात्मक योग्यता के आधार पर निर्ग्रन्थ को पांच भागों में विभाजित किया गया है- 1. पुलाक, 2. बकुश, 3. कुशील, 4. निर्ग्रन्थ तथा 5. स्नातक। मूलगुण तथा उत्तरगुण में परिपूर्णता प्राप्त करते हुए भी जो वीतराग-मार्ग से कभी विचलित नहीं होते, वे ‘पुलाक निर्ग्रन्थ' है। शरीर और उपकरणों के संस्कारों का अनुसरण करने वाले सिद्धि तथा कीर्ति के अभिलाषी, सुखशील, अविवक्त परिवार वाला, शबल अतिचार दोषों से युक्त को 'बकुश निर्ग्रन्थ' कहते है। इन्द्रियों के वशवर्ती होने से उत्तम गुणों की विराधनामूलक प्रवृत्ति करने वाला 'प्रतिसेवना कुशील' और कभी-कभी तीव्र कषाय के वश न होकर कदाचित् ! मन्द कषाय के वशीभूत हो जाने वाला 'कषाय कुशील' है। सर्वज्ञता न होने पर भी जिसमें राग-द्वेष से अत्यन्त अभाव हो और अन्तर्मुहुर्त बाद ही सर्वज्ञता प्रकट होने वाली हो, उसे 'निर्ग्रन्थ' कहते हैं तथा जिसमें सर्वज्ञता प्रकट हो गयी हो, वह ‘स्नातक' कहलाता है। णाह, णाय, णात- ये सब एक अर्थ के वाचक हैं। दिगम्बर-परम्परा के अनुसार भगवान् महावीर णाह वंश या नाथवंश के क्षत्रिय थे। कुण्डपुरपुरवरिस्सर सिद्धत्यक्खत्तियस्स णाहकुले। तिसिलाए दीवए देवीसदसेवभाणाए।।१।। (जयधवला, भाग 1, पृ. 78) - णाहोग्गवंसेसु वि वीर पासा।। (ति.प.,अ. 4) श्वेताम्बरीय उल्लेखों के अनुसार भगवान् महावीर णाय कुल के थे। - णातपुत्ते महावीर एवमाह जिणुत्तमे। सूत्र 1, श्रु. अ. 1 उ - -