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________________ 7. नेमिनाथचरित - लखमदेव, अ. 11, 10 4 // , पत्र सं. 52, लेखनकाल सं. 1597, अगहन। 8. नेमिनाथचरिउ - ग, अनु. ३२वां, पत्र सं. 51, 10 4, लेखनकाल सं. 1574, पौर्ष कृष्ण 3, सरस्वती भवन, नागौर। नेमिनाथचरित - पं. लक्ष्मणदेव, अनु. 464 अ. क्र. 195, पत्र सं. 65, 19 4.11, लेखनकाल सं. 1519, वैशाख कृष्ण 13, रविवार, पूर्ण, सरस्वती भवन नागौर। 10. नेमिनाथचरिउ - लक्ष्मणसेन, अन. 533 ब, पत्रा सं. 38, 11 4, पूर्ण, जीर्ण, ले. कां.सं. 1498, सरस्वती भवन नागौर। 11. नेमिनाथचरिउ - हरिभद्रसूरि, क्रम सं. 1094, 10022, 29, 9 19.5, ले. का. सं. 1650, आचार्य विजयदेव और शान्तिसूरि संग्रह, लालभाई दलपतभाई, भारतीय संस्कृति मन्दिर शोध संस्थान, अहमदाबाद। 12. नेमिरास - जिनप्रभ, अनु. 12 (31), पत्र सं. 15, गुटका सं. 25, क्र.सं. 714, श्री दि. जैन मन्दिर, बघीचन्द जी, जयपुर। णेमिणाहचरिउ- कवि लक्षमण णेमिणाहचरिउ के कर्ता कवि लक्ष्मण हैं। ग्रन्थ में 4 सन्धियां या परिच्छेद और 83 कड़वक हैं, जिनकी अनुमानिक श्लोक संख्या 1350 के लगभग है। ग्रन्थ में चरित और धार्मिक उपदेश की प्रधानता होते हुए वह अनेक सुन्दर स्थलों से अलंकृत है। ग्रन्थ की प्रथम सन्धि में जिन और सरस्वती के स्तवन के साथ मानव जन्म की दुर्लभता का निर्देश करते हुए सज्जन-दुर्जन का स्मरण किया और फिर कवि ने अपनी अल्पज्ञता को प्रदर्शित किया है। मगध देश और राजगृह नगर के कथा के पश्चात् राजा श्रेणिक अपनी ज्ञानपिपासा को शान्त करने के लिए गणधर से नेमिनाथ का चरित वर्णन करने के लिए कहता है। कथानक इस प्रकार है __ वराडक देश में स्थि वारावती या द्वारावती नगरी में जनार्दन नाम का राजा राज्य करता था, वहीं शौरपुर नरेश समुद्रविजय अपनी शिवादेवी के साथ रहते थे। जरासन्ध के भय से यादवगण शौरीपुर छोड़कर द्वारिका में रहने लगे। वहीं उनके तीर्थङ्कर नेमिनाथ का जन्म हुआ था। यह कृष्ण के चचेरे भाई थे। बालक का जन्मादि संस्कार इन्द्रादि देवों ने किया था। दूसरी सन्धि में नेमिनाथ की युवावस्था, वसन्त वर्णन और जलक्रीड़ा आदि के प्रसंगों का कथन दिया हुआ है। कृष्ण को नेमिनाथ के पराक्रम से ईर्ष्या होने लगती है और वह उन्हें विरक्त करना चाहते हैं। जूनागढ़ के राजा की पुत्री राजमती से नेमिनाथ का विवाह निश्चित होता है। बारात सज-धज कर जूनागढ़ के सन्निकट पहुँचती है, नेमिनाथ बहुत से राजपुत्रों के साथ रथ में बैठे हुए आस-पास की प्राकृतिक सुषमा का निरीक्षण करते हुए जा रहे थे। उस समय उनकी दृष्टि एक ओर गयी तो उन्होंने देखा बहुत से पशु एक बाड़े में बन्द हैं। वे वहाँ से निकलना चाहते हैं; किन्तु वहाँ से निकलने का कोई मार्ग नहीं है। नेमिनाथ ने सारथी से रथ रोकने को कहा और पूछा कि ये पशु यहाँ क्यों रोके गये हैं? नेमिनाथ को सारथि से यह जानकर बड़ा खेद हुआ कि बारात में आने वाले राजाओं के आतिथ्य के लिए इन पशुओं का वध किया जायगा, इससे उनके दयालु हृदय को बड़ी ठेस लगी। वे बोले - यदि मेरे विवाह के निमित्त इतने पशुओं का जीवन संकट -67
SR No.032866
Book TitleJain Vidya Ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain
PublisherGommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
Publication Year2006
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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