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________________ तीर्थङ्कर चन्द्रप्रभ विषयक साहित्य और उनका जीवन - डॉ. ऋषभचन्द्र जैन 'फौजदार', वैशाली तीर्थङ्कर चन्द्रप्रभ जैन-परम्परा के आठवें तीर्थङ्कर हैं। संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश आदि प्राच्य भाषाओं में उनका चरित लिखा गया है। शौरसेनी प्राकृत के प्रमुख ग्रन्थ 'तिलोयपण्णत्ति' में चौबीस तीर्थङ्करों के जीवनचरित विषयक संक्षिप्त विवरण पाये जाते हैं, जो उत्तरवर्ती ग्रन्थकारों को स्रोत के रूप में उपलब्ध रहे हैं। प्राचीन ग्रन्थकार आचार्यों ने जैन-परम्परा सम्मत तिरेसठ शलाकापुरुषों के जीवनचरित लिखे हैं, जिनमें चौबीस तीर्थङ्करोंके चरित प्रमुख हैं, उनमें भी तीर्थङ्कर चन्द्रप्रभ का जीवन-चरित अंकित किया गया है। संस्कृत-भाषा के ग्रन्थकार महाकवियों- आचार्यों की कृतियों में आचार्य गुणभद्र के उत्तरपुराण, मुनि श्रीचन्द्र के पुराणसार, आचार्य दामनन्दि के पुराणसारसंग्रह, मुनि मल्लिषेण के त्रिषष्टिमहापुराण, पण्डित आशाधर के त्रिषष्टिस्मृतिशास्त्र, आचार्य हेमचन्द्र के त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, महाकवि अमरचन्द्रसूरि के चतुर्विंशतिजिनेन्द्रसंक्षप्तिचरित, उपाध्याय पद्मसुन्दर के रायमल्लाभ्युदय, मेघविजय के लघुत्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, चन्द्रमुनि के लघुमहापुराण या लघुत्रिषष्टिलक्षणमहापुराण, विमलसूरि के त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित आदि ग्रन्थों के उल्लेख प्राप्त होते हैं। इनमें से अनेक ग्रन्थ अद्यावधि अप्रकाशित या अनुपलब्ध हैं; किन्तु जो उपलब्ध हैं, उनमें तीर्थङ्कर चन्द्रप्रभ का चरित वर्णित है। संस्कृत के स्वतन्त्र चन्द्रप्रभचरित विषयक ग्रन्थों में आचार्य वीरनन्दि का चन्द्रप्रभचरित अठारह सर्गों में निबद्ध प्रमुख महाकाव्य है, जो संस्कृत-भाषा में उपलब्ध तीर्थङ्कर चन्द्रप्रभ का आद्य चरित-ग्रन्थ है। जिनरत्नकोश में असग कवि के चन्द्रप्रभचरित का भी उल्लेख हैश किन्तु वह अभी तक प्राप्त नहीं हो पाया है। संस्कृत के तद्विषयक अन्य चरित-ग्रन्थों में देवचन्द सूरि, सर्वानन्द सूरि, भट्टारक शुभचन्द्र प्रभृति ग्रन्थकारों की रचनाएँ उल्लेखनीय हैं। प्राकृत-भाषा में रचित शीलाचार्य (वि.सं. 925) एवं आम्रकवि के 'चउप्पन्नमहापुरिसचरिय' ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं, उनमें भी चन्द्रप्रभ का जीवरचरित पाया जाता है। प्राकृत-भाषा की स्वतन्त्र कृतियों में वीरसूरि, जिनेश्वरसूरि, यशोदेव अपरनाम धनदेव, बड़गच्छीय हरिभद्रसूरि और जिनभद्रसूरि के 'चंदप्पहचरियं' प्रमुख हैं। देवेन्द्रगणि ने भी संस्कृत- प्राकृत-भाषा मिश्र एक चन्द्रप्रभचरित रचा है। ___ अपभ्रंश-भाषा के महाकवि पुष्पदन्त ने महापुराण अपरनाथ तिसट्ठिमहापुरिषगुणालंकारु की छियालीसवीं सन्धि में चन्द्रप्रभ का चरित लिखा है। अपभ्रंश-भाषा के अन्य कवियों ने 'चंदप्पहचरिउ' नाम से स्वतन्त्र चरित-ग्रन्थ रचे हैं, इनमें भट्टारक यश:कीर्ति, कवि दामोदर एवं कवि श्रीचन्द्र की रचनाएं उपलब्ध हैं। श्रीधर के 'चंदप्पहचरिउ' का भी उल्लेख मिलता है। हिन्दी-भाषा में भी चन्द्रप्रभचरित लिखा गया है तथा क्षेत्रीय भाषाओं की रचनाओं की खोज की जा रही है। ___ प्रस्तुत आलेख में उपर्युक्त रचनाओं के आलोक में आठवें तीर्थङ्कर चन्द्रप्रभ का जीवन-चरित प्रस्तुत किया जायेगा। -37.
SR No.032866
Book TitleJain Vidya Ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain
PublisherGommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
Publication Year2006
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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