SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गत 1000-1200 वर्षों से हिन्दी विद्वानों ने भी इस ओर ध्यान दिया और पुराण, काव्य, कथा, स्तवन, पद, बोलि, जावडी, राम चौपाई, जयमाल पूजा, गीत, धमाल आदि के रूपों में रचनाएँ प्रस्तुत हुई और इन महापुरुषों के जीवन एवं उनके उपदेशों का जगत् में प्रचार किया। हिन्दी-भाषा में पहले अपभ्रंश रूप में और बाद में हिन्दी के रूप में खूब साहित्य लिखा। तीर्थङ्कर सुमतिनाथ पर पुराणों के अतिरिक्त स्वतन्त्र रूप से बहुत ही कम साहित्य का निर्माण हुआ और जिस साहित्य का निर्माण हुआ वह भी अति संक्षिप्त रूप में। यहाँ सुमतिनाथ तीर्थङ्कर से सम्बन्धित एवं स्तवन आदि पर ही प्रकाश डाल रहे हैं। हिन्दी-साहित्य के अन्तर्गत कवि स्वयम्भू, देहलकवि, भट्टारक सुरेन्द्रकीर्ति, कवि खुशालचन्द, कवि बनारसीदास, समयसुन्दरजी, भैयाभगवती दास, भूधरदास, वृन्दावनदास, मनरंगलाल, रामचन्द्रजी, बख्तारजी, नैनसुखदासजी, कविरत्न गुणभद्र इत्यादि हिन्दी कवियों ने भगवान् सुमतिनाथ की पर्याप्त भक्ति प्रदर्शित की है। ख- पुरातत्त्व के परिपेक्ष्य में पञ्चम तीर्थङ्कर सुमतिनाथ भगवान् सुमतिनाथ की मूर्तियां विरल है। मथुरा संग्रहालय में (47.3333) चरण चौकी में सुमतिनाथ उत्कीर्ण है। खजुराहो और महोबा से सुमतिनाथ की मूर्तियां मिली हैं। अजयगढ़ दुर्ग के तरौनी द्वार में लांछन युक्त विवस्त्र कार्योत्सर्ग में उनकी मूर्ति उत्कीर्ण है। देवगढ़ के एक पार्श्वनाथ मन्दिर की दीवाल पर पार्श्व प्रतिमा (सप्तफणी) चरण चौकी पर चकवा पक्षी का अंकन है जो कि सुमतिनाथ का लांछन है। ऊपर पार्श्व बने हैं। यह परम्परा कई प्रतिमाओं में देखी जा सकती है। यथा लखनऊ संग्रह की जे. 78 की पादपीठ पर दो वृषभ और ऊपर बलराम श्रीकृष्ण के मध्य नेमिनाथ हैं। लखनऊ संग्रहालय की दूसरी मूर्ति (जे. 856) में नीचे गेंडा है जो श्रेयांसनाथ का लांछन है। ऊपर तीर्थङ्कर की पञ्चतीर्थी है, किन्तु मूलनायक के कन्धे पर लटे हैं। शंखयुक्त प्रतिमा के कन्धे पर लटे हैं। विषय-प्रवेश अध्ययन-१ में इसकी विस्तृत चर्चा की गयी हैं लखनऊ संग्रहालय में इनकी एक भी प्रतिमा नहीं है। कोगाओ होपानाटी वेलारी से प्राप्त तीर्थङ्कर भगवान् सुमतिनाथ की मनोज्ञ मूर्ति प्राप्त है जिसका चित्र अहिंसावाणी वर्ष 1964 अगस्त-सितम्बर अंक में प्रकाशित है।श्री अयोध्याजी में रामकोट के भीतर सुमतिनाथ का मन्दिर बना हुआ है। ___ बीकानेर के जैन मन्दिरों में सुमतिनाथ की पाषाण एवं धातु प्रतिमाएं बहुत सी प्राप्त हैं इनमें से कई पञ्चतीर्थीय एवं चौबीस पट्ट हैं। वैसे सभी तीर्थङ्करों की मुद्रा आदि समानतया होती हैं। केवल लांछन के द्वारा कौन सी प्रतिमा किस तीर्थङ्कर की है, निर्णय किया जाता है। प्रतिमा के सामने या पीछे की ओर जो लेख खुदे हुए हैं। उनको पढ़कर पहचानना पड़ता है। पुरातत्त्व की दृष्टि से बीकानेर राजस्थान का त्रैलोक्य दीपक सुमतिनाथ जिनालय बहुप्रसिद्ध है। ग- पञ्चकल्याणक तीर्थ भूमियाँ तीर्थङ्कर अनेक गति से हुआ करते हैं। जिनके पञ्चकल्याणक होते हैं- वे देवगति अथवा नरकगति से चयकर मनुष्यगति प्राप्त करते हैं। भरत और ऐरावत क्षेत्र में पांच कल्याणक वाले ही तीर्थङ्कर होते हैं। भगवान् के चार कल्याणक अयोध्या में एवं एक कल्याणक सम्मेदशिखर पर हुआ। इस प्रकार भगवान् सुमतिनाथ 31
SR No.032866
Book TitleJain Vidya Ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain
PublisherGommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
Publication Year2006
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy