SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ___ इस तरह तीर्थङ्कर ऋषभदेव द्वारा प्रणीत शिक्षा-दर्शन में शिक्षा की अत्यन्त व्यापक अवधारणा समाविष्ट है जिसमें शिक्षा से तात्पर्य मात्र साक्षरता से नहीं अपितु समीचीन ज्ञान व अवबोध से है। इसका उद्देश्य सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र द्वारा व्यक्तित्व का समग्र विकास करना है। शिक्षा का स्वरूप आजीवन ही है (अत्यन्त व्यापक मोक्ष प्राप्ति तक अनेक जीवनों में विस्तृत) __ इसमें शिक्षा के औपचारिक और अनौपचारिक दोनों रूपों की मान्यता है। शिक्षा का स्वरूप बहुआयामी है। शिक्षण प्रणालियां अत्यन्त समृद्ध और आज भी प्रासंगिक हैं तथा सार्वकालिक, सार्वभौमिक महत्ता रखती हैं। इसमें आत्मानुशासन को ही सर्वोपरि माना है। इसमें स्त्री-पुरुष सभी को शिक्षा प्राप्ति का समान अधिकार है। भगवान् ऋषभदेव के अनुसार जीव शुद्धि, विकास और परिमार्जन के लिए सभी समान रूप से अधिकारी हैं। शिक्षा की अवधि छात्र के बोध के अनुसार है। बौद्धिक क्षमता से छात्र जितना अधिग्रहण करता उसके आगे का पाठ्यक्रम जारी रहता है। इसमें अध्ययन और अध्यापन की कोटि साधना (आचरण) और बोध पर निर्भर मानी है। इसमें शिक्षा के विषयों में जीव और जगत् को केन्द्र बनाकर सम्पूर्ण प्राणिमात्र और जगत् के सम्पूर्ण विषयों को समाहित किया गया है। इसमें लौकिक के साथ पारलौकिक दृष्टि को ध्यान में रखते हुए, भौतिक विषयों के साथ धर्म, दर्शन और नैतिक शिक्षा को भी स्थान दिया है। वस्तुत: इनके समन्वय से ही, सन्तुलित व्यक्तित्व का विकास होता है। __ इस प्रकार तीर्थङ्कर ऋषभदेव ने एक सार्वकालिक महत्तायुक्त अत्यन्त विकसित शिक्षा प्रणाली प्रदान की है जिसके अपने विशिष्ट उद्देश्य स्पष्ट दृष्टिगोचर हैं। अत: यदि तीर्थङ्कर ऋषभदेव द्वारा प्रतिपादित शिक्षा के सूत्रों को भारत के सभी विश्वविद्यालयों के शिक्षाशास्त्र विषयक विभिन्न पाठ्यक्रमों में सम्मिलित किया जाए तो शिक्षा जगत् में अनेक लोकोपयोगी नये आयमों का उद्घाटन सम्भव है। -18
SR No.032866
Book TitleJain Vidya Ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain
PublisherGommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
Publication Year2006
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy