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________________ जैन पत्रकारिता : दशा और दिशा - अखिल बंसल, जयपुर जैन समाज की समस्त गतिविधियों का लेखा-जोखा व्यवस्थित ढंग से समाज तक पहुँचाना जैनत्व की संस्कृति का संरक्षण व उसके संवर्द्धन में योगदान देना जैन पत्रकारिता के दायरे में आता है। जिस प्रकार वक्ता अपने भाषण से, पण्डित अपने प्रवचन से, लेखक अपने लेखन से, कवि अपनी कविता से जनमानस को प्रभावित करने में सक्षम होते हैं उसी प्रकार पत्रकार या सम्पादक अपनी पत्र-पत्रिका के माध्यम से वैचारिक क्रान्ति करने में सक्षम होता है। पत्रकार सामाजिक जीवन में प्राणवायु का संचार कर उसमें जीवन्तता प्रदान करता है। किसी भी पत्र-पत्रिका के प्रकाशन के पूर्व उसका प्रकाशक पत्र की प्रभावी रीति-नीति तैयार करता है और उसे कुशल सम्पादक के हाथ में संचालन हेतु सौंप देता है। पत्र-पत्रिका का भविष्य उसी रीति-नीति पर ही टिका होता है। पत्र की रीति-नीति किस प्रकार की हो इस सम्बन्ध में मथुरा से प्रकाशित 'जैन सन्देश' के यशस्वी सम्पादक स्व० पण्डित कैलाशचन्दजी शास्त्री, वाराणसी ने लिखा था- 'मेरी दृष्टि से जैन पत्र-पत्रिकाओं की रीति-नीति में जैन दृष्टिकोण का भी संरक्षण होना चाहिए। यदि हम जैनत्व की कोई गहन मानवीय भूमिका मानते हैं और जैन सिद्धान्तों की रक्षा करना चाहते हैं तो सबसे पहले हमें उनकी रक्षा अपनी लेखन शैली से ही करनी चाहिए; अर्थात् लेखनी में सच्चाई हो, ईमानदारी हो, महज कटुक्तियाँ और कोरी आक्षेपात्मक भाषा न हो। भारतवर्ष में पत्रकारिता का शुभारम्भ सन् 1780 में कलकत्ता के 'हिक्की गजट' से माना जाता है। हैदराबाद के बैंकटलाल ओझा द्वारा सम्पादित 'हिन्दी समाचारपत्र सूची भाग-१' का प्रकाशन सन् 1950 में हुआ जिसमें लगभग 100 जैन पत्र-पत्रिकाओं का विवरण समाविष्ट है। उक्त विवरण के अनुसार गुजराती में प्रकाशित 'जैन दिवाकर' सबसे प्राचीन जैन पत्र है जो अहमदाबाद से मासिक पत्र के रूप में सन् 1875 में छगनलाल उम्मेदचन्द द्वारा प्रकाशित किया गया यह पत्र 19 वर्षों तक चला। इसके बाद सन 1876 में केशवलाल शिवराम द्वारा गुजराती में ही 'जैन सुधारस' का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ जो मात्र एक वर्ष तक ही चल पाया। सन् 1880 में प्रयाग से प्रकाशित 'जैन पत्रिका' को हिन्दी-भाषा की प्रथम जैन पत्रिका होने का गौरव प्राप्त है। इसके नाम का उल्लेख तो कई रिपोर्टों में प्रकाशित है पर अन्य विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है। सन् 1884 में ब्र. जियालालजी, फर्रुखनगर (हरियाणा) द्वारा 'जैन' (हिन्दी) और 'जियालाल प्रकाश' का प्रकाशन (उर्दू) प्रारम्भ किया गया। इसी काल में अ.भा.दि. जैन शास्त्री परिषद् के मुख पत्र के रूप में सोलापुर (महाराष्ट्र) से 'जैन बोधक' का प्रकाशन हिन्दी और मराठी में रावजी सखाराम दोशी, गोरेलाल शास्त्री और पन्नालालजी सोनी के सम्पादकत्व में पाक्षिक रूप से किया गया, आगे चलकर यह पत्र केवल मराठी में ही प्रकाशित होता रहा। जैन पत्रकारिता का यह प्रारम्भिक काल था। इस काल में 'जैन गजट' और 'जैन मित्र' जैसे हिन्दी समाचार- पत्रों का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। ये दोनों पत्र प्रकाशन के क्षेत्र में अब भी निरन्तरता बनाये हुए हैं। इस - --
SR No.032866
Book TitleJain Vidya Ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain
PublisherGommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
Publication Year2006
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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