________________ प्रस्तुत आलेख द्वारा ज्योतिष के प्रमुख बिन्दुओं पर विचार करने का लक्ष्य बनाया है जिसका विवरण निम्नानसार है। 1. तीन लोक में प्रकाश व्यवस्था (ज्योति-व्यवस्था जैन ज्योतिष के परिप्रेक्ष्य में) 2. ग्रहरश्मि और कर्म-सिद्धान्त का औचित्य और सम्बन्ध 3. अप्रकाशित ग्रन्थों में ‘ज्योतिष करण्डक' ई.पू. 300, विवाह पटल, अग्घकाण्ड, योनिपाहुड, साणरुय छायादार, नाड़ीदार, निमित्तदार, प्रणष्टलाभादि सुमिणसत्तरिया, सुमिणवियार आदि प्रमुख ग्रन्थ ज्योतिष के मौलिक सिद्धान्तों से गर्भित हैं जिन पर शोध-कार्य होना आवश्यक है। वर्तमान में ज्योतिष विषय पर शोध-कार्य विश्वविद्यालय स्तर पर मात्र कुछ ही विद्वानों ने कार्य किया है। इनमें से प्रमुख है१. डॉ. बिहारीलाल अग्रवाल ने 'गणित और ज्योतिष के विकास में जैनाचार्यों का योगदान' विषय पर कार्य किया है। 2. प्रो. एस.एस. लीस्क ने जैन एस्ट्रानामि पर पंजाब विश्वविद्यालय से कार्य किया है। 3. इस लेख के लेखक डॉ. जयकुमार एन् उपाध्ये ने मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर से 'प्राकृत-साहित्य में वर्णित ज्योतिष का आलोचनात्मक परिशीलन' विषय पर कार्य किया है। 4. डॉ. मनोज श्रीमाली द्वारा ‘जैन, ज्योतिष विद्या एक परिशीलन' विषय पर जैन विश्वभारती लाडनूं से कार्य किया है। वस्तुत: जैन वाङ्मय में देश के विभिन्न भाषाओं के माध्यम से जैन ज्योतिष विषय पर समय-समय पर लेखन-कार्य किया गया है, जिसका संकलन और सम्पादन का कार्य नगण्य है। डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्रीजी ने इस क्षेत्र में अगाध कार्य किया है। उनके बाद इस विषय को किसी ने छूने का प्रयास भी किया नहीं है। वर्तमान में इस विषय पर व्यापक कार्य होना आवश्यक है। गृहस्थाचार और श्रमणाचार में ज्योतिष विषय का उपयोग प्रतिदिन प्रतिक्षण होता है। इस विद्या के सार्थक प्रयोग से लोकजीवन का विकास होकर मोक्षमार्ग प्रशस्त होगा तथा मानव जीवन के विकास के रास्ते पर गढ़ी हुई जटिल समस्याएं, इस विद्या के कुशल प्रयोग से समूल समाप्त हो जायेगी। -184 -