________________ 4. द्रव्यानुयोग- अध्यात्म, न्याय, कर्म एवं दर्शन-सम्बन्धी साहित्य। उक्त विभाजन से स्पष्ट है कि जैनधर्म में गणित को अतिविशिष्ट स्थान दिया गया है। ब्रह्माण्ड के रहस्यों एवं उसके स्वरूप के विवेचन हेतु त्रिलोक विज्ञान (Cosmology, Cosmography, Cosmogony), धार्मिक अनुष्ठानों एवं दीक्षादि हेतु ज्योतिष विषयक ग्रन्थों का सृजन जैनाचार्यों ने किया। जहाँ-जहाँ गणना हो, तुलना हो, वृद्धि या न्यूनता हो वहाँ-वहाँ गणित का समावेश हो ही जाता है। इसी कारण जैनाचार्यों द्वारा प्रणीत पूर्णत: गणितीय अथवा गणितीय सामग्री से समृद्ध दार्शनिक ग्रन्थ जैन भण्डारों में प्रचुरता से उपलब्ध है। गणित इतिहास के अध्ययन पर दृष्टिपात करने से यह स्पष्ट है कि १८वीं शताब्दी के अन्त में गणित इतिहास का लेखन प्रारम्भ हो गया था; किन्तु जैनधर्म ग्रन्थों में निहित गणितीय ज्ञान की ओर किसी गणितज्ञ का ध्यान आकृष्ट नहीं हुआ। प्रसिद्ध जैनाचार्य श्रीधर (750 ई. लगभग) द्वारा प्रणीत 'त्रिंशतिका (पाटीगणितसार अथवा गणितसार)' का प्रकाशन सुधाकर द्विवेदी द्वारा 1899 में अवश्य किया गया था; किन्तु उस समय इसको अजैन कृति के रूप में प्रकाशित किया गया था। २०वीं सदी में प्रारम्भ में मद्रास ओरियण्टल मैन्युस्क्रिप्ट लाइब्रेरी से सम्बद्ध ‘एम. रंगाचार्य' को इस भण्डार से प्राप्त आचार्य महावीर द्वारा रचित गणितीय पाण्डुलिपि गणितसार संग्रह की प्राप्ति से भारतीय गणित एक स्वर्णिम पृष्ठ अनावृत्त हुआ। विश्व समुदाय को इस महत्त्वपूर्ण जैन गणितीय कृति की जानकारी सर्वप्रथम 1908 में प्रकाशित आलेख के माध्यम से हुई तथा 1912 में मद्रास सरकार द्वारा ‘गणितसार संग्रह' का एम. रंगाचार्य द्वारा किये गये अंग्रेजी अनुवाद एवं प्रस्तावना सहित प्रकाशन किया गया। वस्तुत: इस कृति के प्रकाशन के साथ ही विश्व समुदाय का ध्यान भारतीय गणित की उस परम्परा की ओर आकृष्ट हुआ जिसे सम्प्रति 'जैन गणित' या 'जैन स्कूल ऑफ मैथमेटिक्स' की संज्ञा दी जाती है और इस प्रकार विश्व क्षितिज पर 'जैन गणित' की पुनर्स्थापना हुई। जैन गणित से आशय जैनाचार्यों द्वारा प्रणीत स्वतन्त्र गणितीय ग्रन्थों अथवा जैन आगम एवं टीका साहित्य में उपलब्ध गणितीय सामग्री से है। प्रस्तुत शोध-पत्र में निम्नांकित बिन्दुओं पर विस्तृत विवेचना प्रस्तुत की जायेगी। 1. जैन साहित्य में गणित एवं प्रमुख जैन गणितज्ञ। 2. जैन गणित के अध्ययन की आवश्यकता एवं उपादेयता। 3. जैन गणित के क्षेत्र में अब तक सम्पन्न शोध-कार्य। 4. जैन गणितीय साहित्य की उपलब्धता/अनुपलब्धता। 5. जैनाचार्यों की विशिष्ट गणितीय उपलब्धियाँ। -17\9