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________________ (3) गोदूध एवं घृत भी पशुजन्य है और गोमांस भी पशुजन्य है। फिर भी गोदुग्ध भक्ष्य है और गोमांस अभक्ष्य। वस्तुवैचित्र्य ऐसा ही है। साँप की मणि से विष दूर होता है और साँप का विष मृत्यु का कारण है। जबकि दोनों की उत्पत्ति साँप से ही हुई है। कारस्कर वृक्ष का पत्ता आयुवर्धक है, उसकी जड़ मृत्युकारक है। अत: एक से उत्पन्न होने पर भी दुग्ध-घृत एवं मांस को समान नहीं माना जा सकता है। (4) धर्मबुद्धि से मांसभक्षण करना और भी अधिक दुहरे पाप का कारण है। जैसे परस्त्रीगामी पुरुष जब अपनी माता के साथ व्यभिचार करता है तो उसे परस्त्रीगामी होने का भी पाप लगता है और माता के साथ सम्भोग करने का भी महापाप लगता है।" इसी प्रकार के अन्य थोथे तर्कों का सयुक्तिक समाधान करते हुए श्री सोमदेवसूरि ने अहिंसा के विषय में जो विशेष बातें कहीं हैं, वे इस प्रकार हैं - मांस त्याग करने से चाण्डाल भी अपना कल्याण कर सकता है। अवन्ति देश में चण्ड नामक चाण्डाल थोड़ी देर के लिए मांस का त्याग कर देने से मरकर यक्षाधिपति हुआ था। देवता, अतिथि, पितर, मन्त्रसिद्धि, औषधि के लिए अथवा भय से भी किसी की हिंसा नहीं करना चाहिए। अहिंसा व्रत की रक्षा के लिए घर के सब काम देखभाल कर करना चाहिए। अहिंसाव्रती नियम से रात्रि भोजनत्यागी होता है। उसे इन अभक्ष्यों का भी त्याग कर देना चाहिए- अचार, पानक, धान्य, फूल, मूल, फल, पत्ता, कमलदण्डी, लता, सूरण, बिना दले मूंग, उड़द, चना आदि, साबुत फलियाँ आदि। इनमें शोधकर खाने की भावना है। कुछ वस्तुएं ऐसी भी हैं जो भक्ष्य होने पर भी परस्पर मिलकर अभक्ष्य हो जाती है। बहु आरम्भ और परिग्रह भी हिंसा है। जहाँ ये हैं, वहाँ अहिंसा कैसे रह सकती है? अहिंसक व्यक्ति में हमेशा मैत्री, प्रमोद, कारण्य एवं माध्यस्थ भावना रहती है। लोक के सभी कार्यों में हिंसा होने पर भी भावों की विशेषता है। (325-326) अन्य सभी व्रत अहिंसाव्रत की रक्षा के लिए हैं। (381) अहिंसाव्रती को अनर्थदण्डविरति का पालनकरना अपेक्षित है। (419-424) सन्दर्भ : 1. उपासकाध्ययन, 7/268,277. 2. तदेव, 285-88. 3. तदेव, 289-290. 4. तदेव, 294-295. 5. तदेव, 298. 6. तदेव, 304-305. 7. तदेव, 311-315. 8. तदेव, 316-322. --154 -
SR No.032866
Book TitleJain Vidya Ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain
PublisherGommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
Publication Year2006
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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