________________ वस्तुतः द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के अनुसार प्रत्येक वस्तुओं में परिवर्तन नियमानुसार होता ही रहता है। अत: युग के अनुसार लोगों की स्मरण और ग्रहण शक्ति में भी परिवर्तन आया। इसलिए सिद्धान्त के विषयों की गहनता और भाषा की कठिनाई ने इस महान् ज्ञान की अविच्छिन्न धारा में बाधा डालना प्रारम्भ किया, तब उपर्युक्त टीकाओं और मूल ग्रन्थ के अनन्त अर्थों को हृदयंगम करके आचार्य वीरसेन (नवीं शती के पूर्वार्द्ध) और जिनसेन (नवीं शती) ने 'मणिप्रवाल-न्याय' से प्राकृत-संस्कृत मिश्रित भाषा में साह हजार श्लोक प्रमाण 'जयधवला' नामक टीका की रचना करके सरल भाषा में उस महान् अविच्छिन्न आगमज्ञान-परम्परा को भावी पीढ़ी के लिए सुरक्षित करके अपने को सभी के लिए श्रद्धा का अमर पात्र बना लिया। -140 -