________________ प्रतिमा विन्ध्यगिरि पर आज संसार को उनकी जीवन गाथा का स्मरण करा रही है। वहाँ ही चन्द्रगिरि पर्वत पर भद्रबाहु मुनिराज की तपोभूमि रही है- कितनी शान्त, कितनी मनोरम ! वहाँ का वातावरण साधना से सिक्त परमाणुओं का पूंज है, केन्द्र है। श्रवणबेलगोला में प्राप्त एक शिलालेख में इस विशाल मूर्ति का परिचय इस प्रकार लिखा है'गोम्मटेश्वर' प्रथम तीर्थङ्कर ऋषभदेव के पुत्र थे। इनका नाम बाहुबली या भुजबली था। इनके ज्येष्ठ भ्राता भरत थे। ऋषभदेव के दीक्षित होने के पश्चात् भरत और बाहुबली दोनों भाइयों में साम्राज्य के लिए युद्ध हुआ। युद्ध में बाहुबली की विजय हुई। पर संसार की गति (राज्य जैसी तुच्छ चीज के लिए भाइयों का परस्पर में लड़ना) देख कर बाहुबली विरक्त हो गये और राज्य अपने ज्येष्ठ भ्राता भरत को देकर तपस्या करने के लिए वन में चले गये। एक वर्ष की कठोर तपस्या के उपरान्त उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ। भरत ने, जो सम्राट हो गये थे, बाहुबली के चरणों में पहुँच कर उनकी पजा एवं भक्ति की। बाहुबली के मुक्त होने के पश्चात् उन्होंने उनकी स्मृति में उनकी शरीराकृति के अनुरूप 525 धनुष प्रमाण की एक प्रस्तर मूर्ति स्थापित करायी। कुछ काल के पश्चात् मूर्ति के आस-पास का प्रदेश कुक्कुट सो से व्याप्त हो गया, जिससे उस मूर्ति का नाम कुक्कुटेश्वर पड़ गया। धीरे-धीरे वह मूर्ति लुप्त हो गयी और उसके दर्शन अगम्य एवं दुर्लभ हो गये। गंगनरेश रायमल्ल के मन्त्री चामुण्डराय ने इस मूर्ति का वृतान्त सुना और उन्हें उसके दर्शन करने की अभिलाषा हुई, पर उस स्थान (पोदनपुर) की यात्रा अशक्य जान उन्होंने उसी के समान एक सौम्य मूर्ति स्थापित करने का विचार किया और तदनुसार इस मूर्ति का निर्माण कराया। इस मूर्ति का निर्माण किसी शिल्पी ने किया है यह निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता है। चन्द्रगिरि पर एक शिलाखण्ड पर भरतेश्वर की अपूर्ण मूर्ति है। इस पर अरिष्टनेमि का नाम अंकित है। उसी के आधार से लोग अनुमान लगा लेते हैं कि बाहुबलि मूर्ति का कलाकार अरिष्टनेमि रहा होगा। मूर्ति प्रतिष्ठा का समय बाहुबलीचरित में प्रतिष्ठा तिथि दी गयी है कल्क्यब्दे षट्शताख्ये विनुत विभव संवत्सरे मासि चैत्रे। पंचाम्यां शुक्लपक्षे दिनमणि दिवसे कुंभलग्ने सुयोगे।। सौभाग्ये मस्तनाम्नि प्रकटित भगणे सुप्रशस्तरं चकार। श्रीमच्चामुण्डराजो वेल्गुलनगरे गोम्मटेश प्रतिष्ठाम्।। अर्थात् काल्कि सं. 600 में विभव संवत्सर में चैत्र शुक्ला पंचमी रविवार को कुम्भ लग्न, सौभाग्ययोग, मृगशिरा नक्षत्र में चामुण्डराय ने बेल्गुल नगर में गोमटेश की प्रतिष्ठा करायी। इस निर्दिष्ट तिथि के सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद है। फिर भी पं. नेमिचन्द्र ज्योतिषाचार्य लिखते हैं कि "भारतीय ज्योतिष गणना के आधार पर विश्वसंवत्सर चैत्र शुक्ला पंचमी रविवार को मृगशिरा नक्षत्र का योग 13 मार्च सन् 1981 में घटित होता है। अत:मूर्ति का प्रतिष्ठाकाल सन् 981 होना चाहिए।" -117 -