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________________ जैन-साहित्य में भगवान् बाहुबली - प्रो. डॉ. पुष्पलता जैन जैन-परम्परा में भगवान् बाहुबली स्वाभिमान, साहस, बल और आत्मविश्वास के प्रतीक है। उन्होंने आदिनाथ स्वामी से भी पहले मोक्ष प्राप्त कर आत्मतप की श्रेष्ठता को जहाँ सिद्ध किया वहीं त्रेसठ शलाका पुरुषों की परिधि से बाहर रहकर भी भगवान् के अभिधान को प्राप्त किया। वे मूलत: अयोध्यावासी थे पर उन्होंने अपना कार्यक्षेत्र पोदनपुर बनाया, जो चाहे तक्षशिला हो या बम्बई का समीपवर्ती भाग या फिर श्रवणबेलगोला के रूप में दक्षिणापथ का कोई हिस्सा। यह इस तथ्य का प्रतीक तो है ही कि उनका चुम्बकीय व्यक्तित्व किसी परीधि में नही बाधा जा सकता। वे जाति, सम्प्रदाय, धर्म और सीमा से परे थे। यही कारण है कि उन्हें समग्र भारतवासी एक स्वर से आज भी सम्मान देते हैं, उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। ___ यहाँ हम प्राचीन और अर्वाचीन जैन-साहित्य में वर्णित भगवान् बाहुबली पर उपलब्ध साहित्य का एक सर्वेक्षण प्रस्तुत कर रहे हैं जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि भरत-बाहुबली का प्रसंग लेखकों के बीच कितना लोकप्रिय और मनभावन रहा है। इस सर्वेक्षण को हम संस्कत. प्राकत-अपभ्रंश और हिन्दी भाषाओं में लिखित साहित्य तक ही अपने आपको सीमित रखेंगे। 1. संस्कृत-काव्य में बाहुबली कथा / सर्वप्रथम हम पौराणिक महाकाव्यों की ओर दृष्टिपात करें। कवियों ने तीर्थङ्करों पर जो भी महाकाव्य लिखे हैं उनमें प्रसंगवश भरत-बाहुबली का कथानक स्वभावतः आ गया है। महापुराण (आदिपुराण और उत्तरपुराण) आचार्य जिनसेन और गुणभद्र की विशाल महाकृति है। प्रथम 47 पर्व आ. जिनसेन ने लिखे और शेष 48-76 तक पर्यों की रचना गुणभद्र ने की। इसमें कुल 19207 (11429 7778) अनुष्टुप हैं। जिनसेन (सन् 763-843) ने आदिपुराण में तीर्थङ्कर ऋषभ के दशपूर्वभवों और वर्तमान भव का तथा भरत-बाहुबली के चरित्र का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है। भरत-बाहुबली का विशेष सन्दर्भ 26 से ३८वें पर्यों तक आया है जिनमें भरत चक्रवर्ती की चक्ररत्न प्राप्ति से लेकर दिग्विजय तथा नगर-प्रवेश के पूर्व भरत-बाहुबली युद्ध, बाहुबली का वैराग्य एवं दीक्षा तथा भरत द्वारा ब्राह्मण वर्ण की स्थापना को अपना वर्ण्यविषय बनाया है। इसी आधार पर दामनन्दि (शक सं. 969) का पुराणसार संग्रह, पं. आशाधर का त्रिषष्टि स्मृतिशास्त्र (वि.सं. 1292), भट्टारक सकलकीर्ति का आदिपुराण-उत्तरपुराण, उपाध्याय पद्मसुन्दर का रायमल्लाभ्युदय, आचार्य हेमचन्द्र का त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (वि.सं. 1226), अमरचन्द्र सूरि का चतुर्विंशति जिनेन्द्र संक्षिप्तचरितानि (सन् 1238), मेरुतुंग का महापुरुषचरित (१३वीं शती), मेघविजय उपाध्याय का लघुत्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (वि.सं. 1709) विशेष उल्लेखनीय है। कुछ स्वतन्त्र पौराणिक महाकाव्य हैं जिनमें भरत-बाहुबली के प्रसंग आये हैं। जैसे- आचार्य रविषेण (७वीं शती) के पद्मपुराण के चतुर्थ पर्व में आयी बाहुबली, कथा विनयचन्द्र का आदिनाथचरित (वि.सं. 1300), सकलकीर्ति का आदिनाथपुराण (१५वीं. शती)। प्रथम चक्रवर्ती पर स्वतन्त्र रूप से लिखा गया महाकवि आशाधर (वि.सं. 1237-1296) का
SR No.032866
Book TitleJain Vidya Ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain
PublisherGommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
Publication Year2006
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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