________________ चित्त-समाधि: जैन योग सुनिउणमणाइणिहणं भूयहियं भूयभावणमणग्छ / अमियम जियं महत्थं महाणुभावं महाविसयं // 45 // झाइज्जा निरवज्जं जिणाणमाणं जगप्पईवाणं / अणिउणजणदुण्णेयं नय-भंग-पमाण-गमगहणं // 46 // तत्थ य मइदोब्बलेणं तविहायरियविरहओ वावि / णेयगहणत्तणेण य णाणावरणोदएणं च // 47 / / हेऊदाहरणासंभवे य सइ सुठ्ठ जं न बुज्झज्जा।। सवण्णुमयम वितहं तहावि तं चिंतए मइमं // 48 // अणुवकयपराणुग्गहपरायणा जं जिणा जगप्पवरा / जियराग-दोस-मोहा य णण्णहावादिणो तेणं // 46 // रागहोस-कसाया ऽऽसवादिकिरियास वटटमाणाणं / / इह-परलोयावाओ झाइज्जा वज्जपरिवज्जी // 50 // पयइ-ठिइ-पएसा ऽणुभावभिन्नं सुहासुहविहत्तं / जोगाणुभावजणियं कम्म विवागं विचितेज्जा // 51 // जिणदेसियाइ लक्खण-संठाणा ऽऽसण-विहाण-माणाई। उप्पायट्ठिइभंगाइ पज्जवा जे य दव्वाणं // 52 // पंचत्थिकायमइयं लोगमणाइणिहणं जिणक्खायं / णामाइभेयविहियं तिविहमहोलोयभेयाइं // 53 // खिइ-वलय-दीव-सागर - नरय-विमाण - भवणाइसंठाणं / वोमाइपइट्ठाणं निययं लोगट्ठिइविहाणं // 54 // उवओगलक्षणमणाइनिहणमत्यंतरं सरीराओ। जीवमरूविं कारि भोयं च सयस्स कम्मस्स // 55 // तस्स य सकम्मजणियं जम्माइजलं कसायपायालं / वसणसयसावयमणं मोहावत्तं महाभीमं // 56 // अण्णाण - मारुएरियसंजोग - विजोगवीइसंताणं / संसार-सागरमणोरपारमसुहं विचितेज्जा // 57 // तस्स य संतरणसहं सम्मइंसण-सुबंधणमणग्धं / णाणमयकण्णधारं चारित्तमयं महापोयं // 58 / / संवरकयनिच्छि तव-पवणाइद्धजइणतरवेगं / वेरग्गमग्गपडियं विसोत्तियावीइनिक्खोभं // 56 //