________________ क्षयोपशम भाव चर्चा इस पुस्तक के सम्पूर्ण इतिवृत्त को इसके पूर्व प्रकाशक, मासिक पत्रिका 'धर्ममंगल' की सम्पादिका, सौ. लीलावती जैन ने मार्च 2008 के अंक में 'अन्तर की बात' शीर्षक में प्रगट किया ही है। इस पुस्तक के बीज भी मई जून जुलाई 2007 के 'जिनभाषित' के सम्पादकीय लेखों को पढ़कर जो शंकाएँ, उनके मन में उत्पन्न हुईं, और उसके सम्बन्ध में आ. भाईसाहब हेमचन्दजी से समाधान जानना चाहा तो उसके समाधानस्वरूप उन्होंने समय समय पर लेख लिखकर उनका समाधान किया, उन्हीं के संकलनस्वरूप इस पुस्तक का जन्म हुआ है। इस जटिल किन्तु आवश्यक विषय पर ग्रन्थ-प्रकाशन की आवश्यकता बताते हुए सौ. लीलावतीजी ने स्वयं लिखा है - ___ “धवला आदि के माध्यम से जो प्रमाण भाई ब्र. पण्डित हेमचन्दजी ने दिये हैं, उन्हें छानने (गहराई से मन्थन करने) का या उनको ध्यान में रखकर इस विषय पर विचार करने का मौका सबको मिले और समाज विवादित विषय पर निर्णय कर सकें, दिग्भ्रमित होने से बचें, अनेकों को उसका लाभ मिले और अगर इस विषय में कुछ त्रुटियाँ रह गई हों, जो हमारी नजर से ओझल रह गई हों, उन्हें भी सुधारने का मौका मिले। विद्वद्वर्यों से करबद्ध प्रार्थना है कि वे अपने अभिप्राय से अवगत करावें।" यद्यपि पूर्व-प्रकाशित अंक में कुछ सामग्री, अन्य विषय-दैव-पुरुषार्थ और निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध के विषय में भी है, परन्तु यहाँ इस पुस्तक में एक ही विषय पर सामग्री प्रस्तुत की है, अतः इसका नामकरण भी उसी विषय को लेकर 'क्षयोपशम भाव चर्चा' रखा है। शेष सामग्री का आगामी पुस्तकों में उपयोग अवश्य किया जाएगा। ___ बाल ब्र. हेमचन्दजी जैन की ही पूर्व पुस्तक 'सम्यक्त्व चर्चा' के समान ही इस पुस्तक को विभिन्न चर्चाओं में संकलित किया है। आशा है पाठकों को अवश्य हृदयग्राही होगा। - डॉ. राकेश जैन शास्त्री, नागपुर