________________ प्रस्तावना : पाँच भावों में 'क्षयोपशम भाव' 25 __1. शुभोपयोग की मर्यादा छठवें गुणस्थान तक ही है या सातवें गुणस्थान में भी शुभोपयोग जाता है या जा सकता है? क्या सातवें गुणस्थान में भी विकल्पात्मक शुभोपयोग सम्भव है या वहाँ निर्विकल्प दशा ही है। या शुभोपयोग भी निर्विकल्प होगा और यदि वहाँ निर्विकल्प अवस्था है तो वह शुद्धोपयोग ही कहलायेगा, शुभोपयोग क्यों? ___2. हमारा मानना तो ऐसा है कि मुनियों को छठवें गुणस्थान में शुभोपयोग और सातवें गुणस्थान में शुद्धोपयोग ही है तथा छठवाँ गुणस्थान सविकल्पता का और सातवाँ गुणस्थान निर्विकल्पता का ही है। ___ 3. इसी प्रकार प्रवचनसार में चरणानुयोग-चूलिका में जो दो प्रकार के मुनि कहे हैं - शुभोपयोगी तथा शुद्धोपयोगी; वहाँ भी शुभोपयोगी अर्थात् छठवाँ गुणस्थान तथा शुद्धोपयोगी अर्थात् सातवें गुणस्थानवर्ती की बात है। यदि ऐसा नहीं है तो मुनियों के उक्त दो भेद किस प्रकार हैं? 4. क्या शुद्धोपयोग के सर्वथा अभाव में भी मुनिपना सम्भव है। यदि सम्भव है तो वहाँ भावलिंग किस प्रकार घटेगा अर्थात् द्रव्यलिंगी संज्ञा प्राप्त होगी। क्या यह ठीक है? 5. शुभोपयोग-अशुभोपयोग-शुद्धोपयोग या शुभभाव-अशुभभाव-शुद्धभाव या शुभपरिणाम-अशुभपरिणाम-शुद्धपरिणाम या पुण्य-पाप-धर्म या शुभोपरागअशुभोपराग-वीतराग या शुभयोग-अशुभयोग-शुद्धयोग - उक्त सभी का एक ही तात्पर्य है या कुछ अन्तर है ? इस प्रश्न को इस प्रकार भी पूछ सकते हैं कि उपयोग-भाव-परिणाम-योग आदि एकार्थवाची हैं या उनमें अन्तर है। विशेषतः उपयोग और भाव में क्या अन्तर है? 6. मिथ्यादृष्टि को जिस प्रकार शुभोपयोग नहीं होता तो क्या उसे शुभभाव या पुण्यभाव भी नहीं होता। यदि होते हैं तो उसके शुभभाव या पुण्यभाव क्या अशुभोपयोग की संज्ञा पायेंगे? ____7. करणानुयोग एवं द्रव्यानुयोग की परिपाटी के अनुसार क्या इन तीनों उपयोगों की व्याख्या अलग-अलग होगी या एक ही होगी। पण्डित टोडरमलजी ने मोक्षमार्गप्रकाशक के आठवें अध्याय में भी इस विषय को उठाया है। कृपया NA.