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________________ ( 207 ) कर सकता हूँ।' हाँ, यह तो मेरी अबकी सूझ रही न ! उस वक्त अकल पर पत्थर पड़ गया था। मेरी भी विचित्र खोपड़ी है। जब सूझती है अवसर निकल जाने पर। हाँ मैंने निश्चय किया कि “पण्डित धोंधानाथ को बिना दस' पाँच घिस्से' दिये न छोड़ गा / या तो बेटा से प्राधा रखा लूंगा या फिर यहीं बम्बई के मैदान में हमारी उनकी ठनेगी / वे विद्वान् होंगे, अपनी बला से / यहाँ सारी जवानी अखाड़े में कटी है। भुरकुस निकाल लूंगा।" ___संकेत-लगेगा अढ़ाई तीन सौ-विनियोगस्तु (व्ययस्तु) सार्धयो रूप्यकशतयोस्त्रयाणां वा रूप्यकशतानाम् / अब भी मुझे उल्लू फंसाने का अच्छा मौका था-अद्यापि शोभनोऽवकाशो मेऽन्धप्रायं जनमतिसन्धातुम् / कह सकता थाशक्यमेतद्वक्तुम्, इदमिदानी ब्र याम् / यहाँ 'इदानीम्' वाक्यालंकार में प्रयुक्त हुआ है, इसका कुछ अर्थ नहीं / जैसे-क इदानीमुष्णोदकेन नवमालिकां सिञ्चतिशाकुन्तल / ब्रयाम् = वक्तुं शक्नुयाम् / 'शकि लिङ् च' इस सूत्र से लिङ् हुआ है / लिङ् का विधान अर्थ-विशेष में तो किया है, काल-विशेष में नहीं / सभी कालों में प्रयोग हो सकता है। यहां लिङ् भूतकाल में होनेवाली (जो भूतकाल में हो सकती थी) क्रिया को कहता है / भूतप्राणता चात्र लिङः / हाँ, यह तो मेरी अबकी...."निकल जाने पर-इयं च मे सद्यः स्फूतिः / तत्कालन्तूपहतेव मे बुद्धिरभूत् / मम च विचित्रं मस्तिष्कम् / अतीत एवावसरे प्रतिभाति मामर्थः / वे विद्वान् होंगे....."निकाल लूंगा-भवत्वेव स विद्वान्, किं ममानेन / अहं तु सर्वमायुरक्षवाट एवात्यवीवहम् / नूनं चूर्णपेषं पेक्ष्यामि / अभ्यास-५४ तुमने मेरे मन लेने के लिये कहा / मैं ऐसी भोली नहीं कि तुम्हारे मन का रहस्य न समझू / तुम्हारे दिल में मेरे पाराम का विचार आया ही नहीं। तुम तो खुश थे कि अच्छी लौंडी मिल गई। एक रोटी खाती है और चुपचाप पड़ी रहती है-महज खाने और कपड़े पर वह भी जब घर भर की जरूरतों से बचे तब न ! पचहत्तर रुपल्लिया लाकर मेरे हाथ पर रख देते हो और सारी 1-1. पञ्चदश प्राघाताः / 2-2. आवयोर्द्वन्द्वं प्रवत्य॑ति / 3-3. ममाभिप्रायमभ्यूहितुम् / ४-दासी, परिचारिका, भुजिष्या।
SR No.032858
Book TitleAnuvad Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharudev Shastri
PublisherMotilal Banarsidass Pvt Ltd
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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