________________ ( 187 ) संकेत-सेवक-पर घर जाकर मेरा महीने से पूर्व.......परं गृहं गत्वाऽहं मासात् पूर्व प्रत्यावर्तितुं नापारयम् / सेवक-भोजन पका सकता हूँ ऐसी स्वादिष्ट भाजियां......भोजनं साधयितुं क्षमः, शाकांश्च तथा स्वादून् ( सुरसान् ) साधयामि, यथा भवतः परितोषोऽवश्यं भावी। सेवक-सच जानिये दुकानदार बहुत चालाक......आपणिका अतिधूर्ता भवन्ति, परमहं तेषामपि गुरुः / वस्तूनां पूर्ण प्रमाणं गृह्णामि, तदनु तत्तु ल्यं मल्यं परिददामि / यदि संभवः स्यात् ( सति संभवे ) कृतिका मुद्रामपि तेभ्यः समर्पयामि। स्वामी-तुम तो चलते पुरजे मालूम........त्व तु धूर्त एव प्रतिभासि, माऽस्मानपि प्रतारयः ( मा नोऽतिसन्धाः ) / अभ्यास-३४ (प्राहक और दुकानदार) दुकानदार-क्यों साहिब, क्या चाहिये ? ग्राहक-कुछ फल / सेब कैसे दिये हैं ? दुका०-तीन रुपये सेर / जितने चाहिये चुन लो या मुझे कहो मैं चुन हूँ ? ग्राहक-अच्छा, तीन सेर सेब चुनकर तोल दो, परन्तु देखना मेरे विश्वास से अनुचित लाभ न उठाना। गन्दे, सड़े या कच्चे सेब न ढकेल देना। ___ दुका०-क्या यह भी संभव है ? आप स्वयं देख लेंगे कि कैसे प्रच्छे सेब मैंने आपको दिये हैं / यदि फिर भी पसन्द न आएँ तो अपने पैसे वापिस ले जा सकते हैं। ग्राहक-बम्बई के केले कैसे दिये हैं ? दुका०–श्रीमन् ! एक रुपये दर्जन / . ग्राहक-तीन दर्जन केले दे दो। देखना कहीं कोई सड़ा गला केला न दे देना।