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________________ ( 186 ) ललित-मैंने तुम जैसे बीसियों छात्र देखे हैं.......दृष्टं मयाऽनेका विशतयस्त्वद्विधानां छात्राणां पाठालयलब्धपुरस्काराणां कृतेऽतिमात्र सीदन्ति, क्षीणशक्तयश्च सत्यो लोकव्यवहारं प्रविशन्तीति / अभ्यास-३३ (स्वामी और सेवक) स्वामी-कहां से आये हो? सेवक-जिला होशियारपुर से। स्वामी-आगे कहीं नौकरी की? सेवक-जी हां, आपके पड़ोसी श्री रामदेवजी के यहां चार बरस काम किया है, आप उनसे मेरे विषय में पूछताछ कर सकते हैं। स्वामी-तो उनके यहां से क्यों नौकरी छोड़ दी ? सेवक-मेरे किसी निकट सम्बन्धी की शादी थी और ऐसे अवसर पर मेरा उसमें सम्मिलित होना आवश्यक था। मैंने पन्द्रह दिन की छुट्टी ली, पर घर जाकर मेरा महीने से पहले आना न बना। इसी बीच में उन्होंने किसी और नौकर का प्रबन्ध कर लिया। स्वामी-क्या कुछ काम करना जानते हो? सेवक-श्रीमन्, घर के सब काम कर सकता हूँ। भोजन पका सकता हूँ, ऐसी स्वादिष्ट भाजियां बनाता है, कि आप प्रसन्न हो जायेंगे। स्वामी-क्या बाजार से हर किस्म का सौदा मोल ले सकते हों ? सेवक-सच जानिए दुकानदार बहत चालाक होते हैं. पर मैं तो उनका भी गुरु हूँ। पूरा तौल लेता हूँ और फिर मोल देता हूँ। यदि हो सका तो खोटा रुपया भी जड़ पाता हूँ। स्वामी-तुम तो चलते पुरजे मालूम होते हो, कहीं हमारे साथ भी हथकण्डे न खेलना। . सेवक--जी नहीं, मैं चालाकी उसी के साथ करता हूँ जो मेरे साथ चालाकी करता है, नहीं तो मेरे जैसा सीधा साधा व्यक्ति प्रापको हूँढ़ने से भी नहीं मिलेगा।
SR No.032858
Book TitleAnuvad Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharudev Shastri
PublisherMotilal Banarsidass Pvt Ltd
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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