________________ 90] नित्य नियम पूजा दोहा-एक स्वरूप प्रकाश निज, वचन कह्यो नहि जाय / तीनभेद व्योहार सब 'द्यानत' को सुखदाय ||7|| ॐ ह्रीं सम्यग्रत्नत्रयाय महाऱ्या निर्मपामीति स्वाहा / दर्शन पूजा दोहा-सिद्ध अष्टमगुनमय प्रगट मुक्त जीव सोपान / ज्ञानचरित जिहं बिन अफल, सम्यग्दर्शन प्रधान / ॐ ह्रीं अष्टांगसम्यग्दर्शन ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् / ॐ ह्रीं अष्टांगसम्यग्दर्शन ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः / ॐ ह्री अष्टांगसम्यग्दर्शन ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सोरठा-नीर सुगन्ध अपार, तषा हरै मल छय करें / सम्यक् दर्शन सार, आठ अङ्ग पूजौं सदा / 11 ॐ ह्रीं अष्टांगसम्यग्दर्शनाय जलं निर्व० स्वाहा / जल केशर घनसार, ताप हरै शीतल करै। ___ सम्यक् दर्शन सार, आठ अङ्ग पूजौं सदा // 2 // ह्रीं अष्टांगसम्यग्दर्शनाय चंदनं निर्व• स्वाहा / अक्षत अनुप निहार, दारिद नारी सुख भरै / सम्यक् दर्शन सार, आठ अङ्ग पूजौं सदा / / 3 / / ह्रीं अष्टांगसम्यग्दर्शनाय अक्षतान् निर्व• स्वाहा / पहुप सुवास उदार, खेद हरै मन शुचि करै। सम्यक दर्शन सार, आठ अङ्ग पूजौं सदा // 4 ॐ ह्रीं अष्टांगसम्यग्दर्शनाय पुष्पं निर्व० स्वाहा /