________________ नित्य नियम पूजा.......................८३.. अङ्ग पूजा- सोरठा पीडै दुष्ट अनेक, बांध मार बहु विधि करै। धरिये छिमा विवेक, कोप न कीजै पीतमा / 1 // चौपाई मिश्रित गीता छन्द उत्तम छिमा गहो रे भाई इहभव जस परभव सुखदाई। गाली सुनि मन खेद न आनो, गुनको औगुन कहै अयानो / / कहि है अयानो वस्तु छीने, बांध मार बहुँविधि करें। धरतै निकार, तन विदारै वैर जो न तहां धरै / / ते करम पूरव किये खोटे, सहै क्यों नहिं जीयरा। अतिक्रोध अगनि बुझाय प्रानी, साम्य जल ले सीयरा॥ ॐ ह्रीं उत्तमक्षमाधौगाय अी निर्वपामीति स्वाहा // 1 // मान महाविषरूप, करहि नीचगति जगतमें / कोमल सुधा अनप, सुख पाने प्राणी सदा / 2 / / 'उत्तम मार्दवगुण मन माना, मान करनको कौन ठिकाना। वस्यो निगोदमाहित आया, दमरी रूकन भागबिकाया / / रुकन विकाया कर्म वशतें देव इकइन्द्री भया / उत्तम मुआ चांडाल हुआ, भूप कीडोंमें गया / जीतव्य-जीवन-धन गुमान, कहा करे जल बुदबुदा। करि विनय बहुँगुण बड़े जनकी ज्ञानको पानै उदा॥ ॐ ह्रीं उत्तममार्दवध गाय अर्घ निर्व० स्वाहा // 2 // कपट न कीजे कोय, चोरनके पुर ना बसे / सरल सुभावी होय, ताके घर बहु सम्पदा // 2 // उत्तम आर्जवरीति बखानी रंचक दगा बहुत दुखदानी / मनमें हो सो वचन उचरिये, वचन होय सो तनसों करिये //