________________ 84 ] नित्य नियम पूजा करिये सरल तिहुँ जोग अपने देख निरमल आरसी / मुख करें जैसा लखै तैसा, कपट प्रीति अंगारसी // नहि लहै लछमी अधिक छलकरि, करमबंध-विशेषता / भय त्यागी दूध बिलाव पीवै आपदा नहिं देखता // 3 // * ही उत्तमआर्जवधर्मागाय अयं निर्वपामीति स्वाहा // 3 // कठिन वचन मत बोल, पर निंदा अरु झूठ तज / सांच जवाहर खोल, सतवादी जगमें सुखी . उत्तम सत्यवरत पालीजै, पर विश्वास घात नहीं किजै / सांचे झूठे मानुष देखो, आपन पूत स्वपास न पेखो / / पेखो तिहायत पुरुष साँचेको, दरव सब दीजिये। मुनिराज श्रावककी प्रतिष्ठा, सांचगुन लख लीजिये। ऊँचे सिंहासन बैठी वसुनृप धरमका भूपति भयो / बच झूठ सेती नरक पहुँचा, सुरगमें नारद गया // 4 // ॐ ह्रीं उत्तमसत्यधर्मागाय अध्यं निर्वपामोति स्वाहा // 4 // धरि हिग्दै सतोष, करहूँ तपस्या देहसों / शौच सदा निरदोष, धरम बड़ो संसारमें / / उत्तम शौच सर्व जग जानो, लोभ पापको वाप बखानौ / आशा-पास महा दुखदानी, सुख पावे सन्तोषी प्राणी / / प्राणी सदा शुचिशील जप तप, ज्ञानध्यान प्रभावत। नित गंगजमुन समुद्र हाये अशुचि दोष सुभावतें / ऊपर अमल मल भरयो भीतर, कौनविधी घट शुचि कहै / / बहू दह मैली सुगुनथैली, शौच गुग साधु लहै // 5 // ॐ ह्रीं उत्तमशौचधर्मागाय अर्घ्यं निर्भपामीति स्वाहा // 5 //