________________ 80 नित्य नियम पूजा कृष्णागरु धूप सुवास, दशदिशि नारि वरें। अति हरषभाव परकाश, मानों नृत्य करै ।।नन्दी० // 7 // ॐ ह्रीं श्रीनंदीश्वरद्वीपे जिनालयस्थ-जिन-प्रतिमाभ्यः धूपं नि० बहुविधिफल ले तिहूँकाल, आनन्द राचत हैं। तुम शिवफल देहु दयाल तु ही हम जाचत है / नन्दी.। 8. ॐ ह्रीं श्रीनदोश्वरद्वीपे जिनालयस्थ-जिन-प्रतिमाभ्यः फलं नि० यह अर्घ कियो निज हेत, तुमको अरपतु हो। 'द्यानत' किज्यो शिवखेत भूमि समरत हों / नन्दी०।।९। ॐ ह्रीं श्रीनंदीश्वरद्वोपे जिनालयस्थ-जिन-प्रतिमाभ्यः अर्घ्य नि० जयमाला-दोहा कार्तिक फाल्गुन षाढके, अन्त आठ दिनमाहि / नन्दीश्वर सुर जात हैं, हम पूमैं इह ठाहिं / / / एकसौ त्रेसठ कोड़ि जोजन महा लाख चौरासिया एकदिशः में लहा आठमों द्वीप नन्दीश्वर भास्करं / भौन बावन प्रतिमा नमों सुखकरं // 2 // चारदिशि चार अंजनगिरी राजही सहस चौरासिया एकदिशि छाजहीं। ढोलसम गोल ऊपर तले सुन्दरं भौन. / 3 / एक इक चार दिशि बार शुभ बाबरी / एक इक लाख जोजन अमल जलभरी चहुंदिशि चार बन लाख जोजन वरं / भौन०1४॥ सोल बापीन मधि सोल गिरि दधिमुखं / सहस दस महा जोजन लखत ही सुखं बावरी कोण दो मांहि दो रतिकरं // भौन / 5 // शैल बत्तीस इक सहस जोजन कहे, चार सौलै मिले सर्व बावन लहे / एक इक सीस पर एक जिनमन्दिरं / भौन०१६