________________ 78 ] नित्य नियम पूजा ऊँचे पांच शतक पर भाखे, चारों नंदनवन अभिलाखे / चैत्यालय सोलह सुखकारी, मनवचतन कर वंदना हमारी / साढ़े पचपन सहस उचंगा, बन सोमनस चार बहुरंगा / चैत्यालय सोलह सुखकारी, मनववतनकर वंदना हमारी // उच्च अठाइस सहस बताये, पांडक चारों वन शुभगाये / चैत्यालय मोलह सुखकारी, मनवचतनकर वंदना हमारी / / सरनर चारन वंदन आत्रे, सो शोभा हम किह मुखगावें / चैत्यालय अस्सी सुखकारी, मनवचतनकर वंदना हमारी / दोहा-पंचमेरूकी आरती, पढ़े हुने जो कोय / 'द्यानत' फल जानै प्रभु, तुरत महा सुख होय // 11 // ॐ ह्रीं पंचमेरु सम्बन्धि जिन-चैत्यालयस्थ जिनबिबेभ्यो अध्यं नि. नन्दीश्वरद्वीप (अष्टान्हिका) पूजा सरव परवमें बड़ो अठाई परव हैं। नन्दीश्वर सुर जांहि लिये वसु दरव हैं / हमें शक्ति सौं नांहि इहा करि थापना।। ___ पूजै जिनगृह प्रतिमा है हित आपना // ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वोपे द्विपंचाशत-जिनालयस्थ जिनप्रतिमा समूह ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् / अत्र तिष्ठ तिष्ट ठः ठः / अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् / कंचन मणिमय भृगार, तीरथ नीर भरा / तिहूँ धार दई निरवार, जामन मरन जरा / /