________________ नित्य नियम पूजा [77 तमहर उज्ज्वल जोति जगाय, दीपसी पजों श्री जिनराय। महासुख होय, देखे नाथ परमसुख होय / पांचों / / 6 // ॐ ह्रीं पंचमेरु संबन्धि जिन-चैत्यालयस्थ-जिनविवेभ्यः दीपं निक खेऊं अगर अमल अधिकाय धूपसों पजों श्रीजिनराय / महासुख होय, देखे नाथ परमसुख होय / / पांचो० // 7 // ॐ ह्रीं पंचमेरु संबन्धि जिन चैत्यालयस्थ-जिनबिवेभ्यः धूपं नि० सुरस सुवर्ण सुगंध सुभाय, फलसों पूजों श्रीजिनराय / महासुख होय, देखे नाथ परमसुख होय // पांचों० / 8 // ॐ ह्रीं पंचमेरु संबन्धि जिन-चैत्यालयस्थ-जिनबिवेभ्यः फलं नि. आठ दरबमय अरघ बनाय 'द्यानत' पूजों श्रीजिनराय / महासुख होय, देखे नाथ परमसुख होय ॥पांचों० / / 9 / / ॐ ह्रीं पंचमेरु संबन्धि जिन-चैत्यालयस्थ-जिनबिबेभ्यः अध्यं निल जयमाला-सोरठा प्रथम सुदर्शन-स्वामी, विजय अचल मन्दर कहा / विद्युन्माली नाम पंचमेरु जगमें प्रगट // 10 / बेसरी छन्द प्रथम सुदर्शन मेरु विराज, भद्रशाल वन भूपर छाजै / चैत्यालय चारों सखकारी, मनवचतन कर वन्दना हमारी। उपर पांच शतक पर सौहै नंदनवन देखत मन मोहे चैत्या. साढ़े वासठ सहस ऊंचाई, बन सुमनस शौभै अधिकाई ।चै. ऊंचा जोजन सहस छतीसं, पांडुकवन सोहै गिरिशीसं चि. चारो मेरु समान बखान, भूपर भद्रसाल चहूँ जाने / चैत्यालय सोलह सुखकारी, मनवचतनकर वंदना हमारी /