________________ 68] नित्य नियम पूजा सप्त ऋषि पूजा छप्पय प्रथम नाम श्रीमन्व दुतिय स्वरमन्व ऋषीश्वर / तीसरे मुनि श्रीनिचय सर्व सुन्दर चौथोवर / / पंचम श्रीजयवान विनयलालस षष्ठम भनि / सप्तम जयमित्राख्य सर्व चारित्रधाम गनि // ये सातो चारणऋद्धिधर, करू तास पदथापना। मैं पूजू मनवचकायकरि, जो सुख चाहूं आपना / / ॐ ह्रीं चारण ऋद्धिधर श्री सप्तऋषीश्वर ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं / अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापन अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणं / अष्टक-गीता छन्द शुभतीर्थ उद्भव जल अनूपम, मिष्ट शीतल लायकै / भवतृषा कन्द निकन्दकारण शुद्ध घट भरवायकैं। मन्वादिचारणऋद्विधारक, मुनिन की पूजा करु। ता करें पातक हरें सारे सकल आनंद बिस्तरु / / 1 / / ॐ ह्रीं श्रीमन्व, स्वरमन्व, निचय, सर्वसुन्दर, जयवान, विनयलालस, जयमित्र, ऋषिभ्यः जलं निर्वपामीति स्वाहा // 1 // श्रीखण्ड कदलीनंद केशर, मंदमंद घिसायकै / तस गंध प्रसारित दिगदिगंतर, भर कटोरी लायकै मन्त्रादिर ॐ ह्रीं मन्वादि-चारण-ऋद्धिधारी सप्तऋषिभ्यो चन्दनं नि०१२॥