________________ नित्य नियम पूजा [69 "अति धवल अक्षत खंड-वर्जित, मिष्ट राजन भोगके / कलधौत थारा भरत सुन्दर, चुनित शुभ उपयोगके म.३॥ ॐ ह्रीं मन्वादि-चारण-ऋद्धिधारी-सप्त-ऋषिभ्यः अक्षतान् नि० बहु वर्ण सुवरण सुमन आछे अमल कमल गुलाबके / केतकी चंपा चारु मरुआ, चुने निज कर चावके ॥म.४॥ ॐ ह्रीं श्रीमन्वादि चारण-ऋविधारी सप्त-ऋषिभ्यः पुष्पं नि. पकवान नानाभांति चातुर, रचित शुद्ध नये नये। सद मिष्ट लाडू आदिभर बहुँ, पुरटके थारा लये ॥म. 5 / ॐ ह्रीं श्रीमन्वादि-चारण-ऋद्धिधारी-सप्तऋषिभ्यः नैवेद्यं निक कलधौत दीपक जड़ित नाना भरित गोघृत सारसों अति ज्वलित जगमग ज्योतिजाकि तिमिरनाशनहारसों म.६ ॐ ह्रीं श्रीमन्वादि चारण-ऋद्धिधारी-सप्त-ऋषिभ्यः दीपं नि० दिकचक्र गंधित होत जाकर, धूप दश अंगी कही। सो लाय मनवचकाय शुद्ध, लगायकर खेऊं सही ।मन्वादि.७ ॐ ह्रीं श्रीमन्वादि-चारण-ऋद्धिधारी-सप्त-ऋषिभ्यः धूपं नि० वरदाख खारक अमित प्यारे, मिष्ट चुष्ट चुनायके / द्रावडी दाडिम चारु पुगी, थाल भर भर लायकै ॥म.॥८ ॐ ह्रीं श्रीमन्वादि चारण-ऋद्धिधारी-सप्त ऋषिभ्यः फलं नि० जलगंधअक्षतपुष्पचरुवर, दीप धूप सु लावना। फल ललित आठों द्रव्यमिश्रित, अघ कीजे पावना म.९ ॐ ह्रीं श्रीमन्वादि-चारण-ऋद्धिधारी-सप्त-ऋषिभ्यः अध्यं नि