________________ नित्य नियम पूजा [59 हरिचन्दन लायो कपूर मिलायो. बहु महकायो मनभायो / जलसंग घसायो रंगसुहायो, चरण चढ़ायो हरषायो / त्रि.२ ॐ ह्रीं श्री सिद्धचक्राधिपतये चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा // 2 // तन्दुल उजियारे शशिदुतिटारे, कमल प्यारे अनियारे। तुषखंड निकारे जलसु पखारे, पुज तुम्हारे ढिंग धारे ।त्रि.३. ह्रीं श्री सिद्धचक्राधिपतये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा / सुरतस्की बारी, प्रतिविहारी किरिया प्यारी गुलजारी। भरि कंचन थारी फलसंबारी, तुम पद धारी अतिसारी त्रि.४ ह्रीं श्री सिद्धचक्राधिपतये पुष्प निर्वपामीति स्वाहा // 4 // पकवान निबाजे, वाद विराजे, अमृत लाजे, क्षुत भाजे / बहु मोदक छाजे, घेवर खाजे, पूजन काजे करि ताजे / त्रि. 5 ॐ ह्रीं श्री सिद्धचक्राधिपतये नैवेद्य निर्वपामीति स्वाहा / / 5 / / आपापर भासे ज्ञान प्रकाशै, चित्तविकासे तम नाशै / ऐसे विध खासे दीप उजासे, धरि तुम पासे उल्लासे ।त्रि.६ . ॐ ह्रीं श्री सिद्धचक्राधिपतये दीपं निर्वापामीति स्वाहा / / 6 / / चुम्बक अलिमाला गन्धविशाला, चंदनकाला गरूवाला। तस चूर्ण रसाला करि ततकाला, अग्निज्वालामे डाला।त्रि.७ . ॐ ह्रीं श्री सिद्धचक्राधिपतये धूपं निर्भपामोति स्वाहा // 7 // श्रीफल अतिभारा, पिस्ता प्यारा, दाख छुहारा सहकारा। ऋतु ऋतुका न्यारा सत्फलसारा, अपरम्पारा, ले धारा / त्रि.८. ॐ ह्रीं श्री सिद्धचक्राधिपतये फलं निर्भपामीति स्वाहा / / 8 / / जल फल वसुवृन्दा अरघ अमन्दा, जजत अनन्दाके कन्दा। मेटो भवफादा, सबदुखदादा, 'हीराचन्दा' तुम बन्दा त्रि.९ ॐ ह्रीं श्री सिद्धचक्राधिपतये अध्यं निपामीति स्वाहा /