________________ 58 / नित्य नियम पूजा निज-गुणाक्षय-रूप-सुधूपनैः, स्वगुणघाति-मल-प्रविनाशनः / विशद-बोध सुदीर्घ-सुखात्मक, सहज-सिद्धमहं परिपूजये।धूप परम-भाव-फलावलि-सम्पदा, सहज-भाव-कुभाव विशोधया। निज-गुणा-स्फुरणात्मनिर जनं, पहज सिद्धमहं परिपूजये / फलं नेत्रोन्मीलि-विकास-भाव-निय हैरत्यन्न ब.धाय वै। वागंधाक्षत-पुष्प-दाम-चरकः सदीप-धूपैः फलः / / यश्चितामणी-शुद्ध-भाव-परम-ज्ञाना मकैरर्चयेत / सिद्ध स्वादुमगाध-बोधमचलं संचर्ययामो वयं / / 9 / इति / / सिद्ध पजा भाषा ___ अडिल्ल छन्द अष्ट करम करि नष्ट अष्ट गुण पायक अष्टम वसुधा माहिं विराजे जायक ... ऐसे सिद्ध अनन्त महन्त मनायकै / __संवौषट आह्वान करू हरषायकै / ही सिद्ध परमेष्ठिन् ! अत्र अवतर 2 संवौषट् स्थापनं। ॐ ह्रीं सिद्धपरमेष्ठिन् ! अत्र तिष्ठत तिष्ठत ठः ठः / ॐ ह्रीं सिद्धपरमेष्ठिन् ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् / छन्द त्रिभंगी। हिमवनगत गंगा आदि अभंगा, तीर्थ उतंगा सरवंगा। आनिय सुरसंगा सलिल सुरंगा, करि मन चंगा भरिभृङ्गा। त्रिभुवनके स्वामी त्रिभुवननामी, अन्तरजामी अभिरामी। शिवपुरविश्रामी निजनिधि पामी सिद्धजजामी सिरनामी // ॐ ह्रीं श्री अनाहतपराक्रमाय सर्वकर्मविनिमुक्ताय सिद्धचकाधिपतये जलं निपामोति स्वाहा /