________________ [55. नित्य नियम पूजा गंधाढ्य सुपयो मधुव्रत-गणैः संगं वरं चंदनम् / पुष्पौधं विमलं सदक्षत-चयं रम्यं चरु दीपकम् / / चूपं गंधयुतं ददामि विविधं श्रेष्ठ फलं लब्धये / सिद्धानां युगपत्क्रमाय विमलं सेनोत्तरं वांछितं 9 // ॐ ह्रीं सिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने अनर्घ्यपद प्राप्तये अर्ध्या ज्ञानोपयोग-विमलं विशदात्मनपं, सूक्ष्म-स्वभाव-परमं यदनंतवीर्य : कौंध-कक्ष दहन-सुख शस्य बीजं वन्दे सदा निरुपम वर सिद्धचक्रम् / 10 // ॐ ह्रीं सिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने महालुं निर्व. स्वाहा। त्रैलोक्येश्वर-वंदनीय चरणाः प्रापुः श्रियं शाश्वता / यानाराध्य निरुद्ध चण्ड-मनसः संतोऽपि तीर्थङ्कराः / / मत्सम्यक्त्व विबाध-वीर्य-विशदाऽब्याबाधताधैगुण / युक्तांस्तादिनिह तोष्टवीमि सवतं सिद्धान् विशुद्धोदयान् / / (पुष्पांजलि) // अथ जयमाला // विराग सनातन शांत निरंश निरामय निर्भय निर्मल हंस सुधाम बिबोंध निधान विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्ध समूह / 1 विदूरित संसृति-भाव निरंग, समामृत-पूरित देव विसंग। अबंध कषायविहीन विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्ध समूह 2 निवारित-दुष्कृत कर्मविपाश, सहामल-केवल केलि-निवास / भवोदधिपारग शांत विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्ध समूह / 3 अनंत सुखामृत सागर धीर, कलंक-रजोमल भूरि-समीर / विखंडितकाम विराम विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्ध समूह।४