________________ नित्य नियम पूजा. दीप्तं च तप्तं च तथा महोयं घोरं तपो घोरपराक्रमस्थाः / ब्रह्मापरं घोरगणाश्चरंतः स्वस्ति क्रियासुः परमर्षयो नः। 8. आमर्षसौंषधयस्तथाशीविषा विषा दृष्टविषंविषाश्च / सखिल्ल-विड्-जल्लमलौषधीशाः स्वस्ति क्रियासुः परमर्षयो न: थीरं स्त्रवन्तोऽत्र घृतं स्त्रवन्तो मधुरस्त्रवंतोऽप्यमृतं स्त्रवन्तः / अक्षीणसंवासमहानशाश्च स्वस्ति क्रियासुः पामर्षयो नः / 10. (इति पुष्पांजलि) [इति परम-ऋषिस्वस्ति मगल विधान] देव-शास्त्रा-गुरु-पूजा (भाषा) ( कवि द्यानतराय कृत) अडिल्ल छंद-प्रथम देव अरिहन्त सुश्रुत सिद्धांतजू / गुरु निग्रन्थ महन्त मुकतिपुर पंथजू / / तीन रतन जग माहिं सो ये भवि ध्याइये / तिनकी भक्ति प्रसाद परम पद पाइये // 1 // दोहा-पूजों पद अरिहन्तके, पूजों गुरुपद सार / पूजों देवी सरस्वती, नित प्रति अष्ट प्रकार / / ह्रीं देवशास्त्र गुरु समूह ! अत्र अवतर 2 संवौषट् आह्वाननं / / ॐ ह्रीं देवशास्त्र गुरु समूह ! अत्र तिष्ठ तिष्ट ठः ठः स्थापनम् / ॐ ह्रीं देवशास्त्र गुरु समूह ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् / // गीता छन्द / सरपति उरगनरनाथ तिनकर, वन्दनीक सप प्रभा / अति शोभनीक सुवणे उज्जवल देख छबि मोहित सभा / वर नीर क्षीरसमुद्र घट भरि, अग्र तसु बहुविधि न। अरिहन्त श्रुत सिद्धांत गुरु, निम्रन्थ नित पूजा र