________________ 4.] नित्य नियम पूजा दोहा-मलिन बस्तु हर लेत सब, जल स्वभाव मल छीन / ___जासों पूजों परमपद देव शास्त्र गुरु तीन // 1 // ॐ ह्रीं देवशास्त्र गुरुभ्यो जन्म-जरा-मृत्यु विनाशनाय जलं निर्ग। जे त्रिजग उदर मंझार प्राणी, तपत अति दुद्धर खरे / तिन अहितरन सवचन जिनके, परम शीतलता भरे / तसु भ्रमर लोभित घ्राण पावन, सरस चंदन घसि सचूं। अरिहन्त श्रुत सिद्धांत गुरु निम्रन्थ नित पूजा रचू // दोहा-चन्दन शीतलता करे, तपत वस्तु परवीन / ___जासों पूजों परमपद, देव शास्त्र गुरु बीन // 2 // ॐ ह्रीं देवशास्त्र गुरुभ्यो संसार-ताप विनाशनाय चंदनं निर्ग० / यह भवसमुद्र अपार तारणके निमित्त सविधि ठई। अती दृढ परमपावन जथारथ, भक्ति वर नौका सही। उज्वल अखंडित सालि तंदुल, पुज धरि त्रयगुण ज~। अरिहन्त श्रुत सिद्धांत गुरु निम्रन्थ नित पूजा रचू। दोहा-तंदुल सालि सुगंध अति, परम अखंडित बीन / जासों पूजों परमपद देव शास्त्र गुरु तीन // 3 // ॐ ह्रीं देव शास्त्र गुरुभ्यो अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्व० स्वाहा / / जे विनयवंत सुभव्य उर, अम्बुज प्रकाशन मान है। जे एक मुख चारित्र भाषित, त्रिजग माहिं प्रधान है। लहि कुंद कमलादिक पहुँप, भव भव कुवेदन सों वचू। अरिहन्त श्रुत सिद्धांत गुरु निम्रन्थ नित पूजा रचू।